जुलाई 15, 2023, शनिवार

वर्ष का चौदहवाँ सामान्य सप्ताह

📒 पहला पाठ : उत्पत्ति 49:29-32, 50:15-26a

29) याकूब ने अपने पुत्रों को यह आदेश दिया, ”मैं शीघ्र ही अपने पितरों में सम्मिलित हो जाऊँगा। मुझे मेरे पूर्वजों के साथ एफ्रोन नामक हित्ती के खेत की गुफा में दफ़नाओ।

30) वह गुफा कनान देश में मामरे के पूर्व मकपेला के खेत में हैं।

31) इब्राहीम ने उसे निजी मक़बरे के लिए एफ्रोन हित्ती से ख़रीदा था।

32) वहाँ इब्राहीम और उनकी पत्नी दफ़नाये गये, वहाँ इसहाक और उनकी पत्नी रिबेका दफ़नाये गये और वहाँ मैंने लेआ को दफ़नाया।”

15) यूसुफ़ के भाई अपने पिता के देहान्त के बाद आपस में कहने लगे, ”हो सकता हैं कि यूसुफ़ हम से बैर करे और हमने उसके साथ जो बुराई की है, उसका बदला चुकाये।”

16) इसलिए उन्होंने यूसुफ़ के पास यह सन्देश भेजा,

17) ”मरने से पहले आपके पिताजी ने आप को यह सन्देश कहला भेजा था – ”तुम्हारे भाइयों ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। मेरा निवेदन है कि तुम अपने भाइयों का अपराध और पाप क्षमा कर दो।” इसलिए आप अपने पिता के ईश्वर के सेवकों के अपराध क्षमा कर दीजिए।” उनकी ये बातें सुन कर यूसुफ़ फूट-फूट कर रोने लगा।

18) यूसुफ़ के भाइयों ने स्वयं आ कर उसे दण्डवत् किया और कहा, ”आप जैसा चाहें, हमारे साथ वैसा करें। हम आपके दास हैं।”

19) यूसुफ़ ने कहा, ”डरिए नहीं। क्या मैं ईश्वर का स्थान ले सकता हूँ?

20) आपने हमारे साथ बुराई करनी चाही, किन्तु ईश्वर ने उसे भलाई में परिणत कर दिया और इस प्रकार बहुत-से लोगों के प्राण बचाये, जैसा कि आजकल हो रहा है।

21) इसलिए डरिए नहीं। मैं आपके और आपके बच्चों के जीवन-निर्वाह का प्रबन्ध करूँगा।” इस प्रकार यूसुफ़ ने अपनी प्रेम पूर्ण बातों से उनकी आशंका दूर कर दी।

22) यूसुफ़ और उसके पिता का परिवार मिस्र में निवास करता रहा। यूसुफ़ एक सौ दस वर्ष की उमर तक जीता रहा।

23) और उसने तीसरी पीढ़ी तक एफ्रईम के बाल-बच्चों को देखा और मनस्से के पुत्र माकीर के बाल-बच्चों को भी अपनी गोद में खिलाया।

24) अन्त में यूसुफ़ ने अपने भाइयों से कहा, मैं मरने पर हूँ। ईश्वर अवश्य ही तुम लोगों की सुध लेगा और तुम्हें इस देश से निकाल कर उस देश ले जायेगा, जिसे उसने शपथ खा कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की हैं।”

25) यूसुफ़ ने इस्राएल के पुत्रों को यह शपथ दिलायी कि जब ईश्वर तुम लोगों की सुध लेगा, तो यहाँ से मेरी हड्डियाँ अपने साथ ले जाना।

26) इसके बाद यूसुफ़ का देहान्त एक सौ दस वर्ष की उमर में हो गया। उसका शव मसालों से संलिप्त कर मिस्र में ही एक शव-मंजूषा में रख दिया गया।

📒 सुसमाचार : मत्ती 10:24-33

24) ’’न शिष्य गुरू से बड़ा होता है और न सेवक अपने स्वामी से।

25) शिष्य के लिए अपने गुरू जैसा और सेवक के लिए अपने स्वामी जैसा बन जाना ही बहुत है। यदि लोगों ने घर के स्वामी को बेलज़ेबुल कहा है, तो वे उसके घर वालों को क्या नहीं कहेंगे?

26) ’’इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जावेगा।

27) मैं जो तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुस-फुसाहटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।

28) उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।

29) ’’क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।

30) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल बाल गिना हुआ है।

31) इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

32) ’’जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा।

33) जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।