पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 6:1-4,6-8

1) प्रभु का यह कहना सुनो- ’’उठो! पहाड़ों के सामने अपनी सफाई दो। पहाडियों को अपनी बात सुनाओ।’’

2) पर्वतों! पृृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबो! प्रभु का मुकदमा सुनो। वह इस्राएल पर अभियोग लगा रहा है:

3) ’’मेरी प्रजा! मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया? मैंने तुम को क्या कष्ट दिया? मुझे उत्तर दो।

4) मैं तुम को मिस्र से निकाल लाया, मैंने तुम को दासता के घर से छुडाया। मैंने पथप्रदर्शक के रूप में मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे पास भेजा।

6) ’’मैं क्या ले कर प्रभु के सामने आऊँगा और सर्वोच्य ईश्वर को दण्डवत करूँगा? क्या मैं होम ले कर उसके सामने आऊँगा? अथवा एक वर्ष के बछड़ों को?

7) क्या ईश्वर हज़ारों मेढ़ों से प्रसन्न होगा? अथवा तेल की कोटि-कोटि धाराओं से? क्या मैं अपने अपराध के प्राश्श्चित्तस्वरूप आपने पहलौठे को अपने पाप के बदले में अपने शरीर के फल को अर्पित करूँगा?’’

8) ’’मनुय! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।’’

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 12:38-42

38) उस समय कुछ शास्त्री और फ़रीसी ईसा से बोले, ’’गुरुवर! हम आपके द्वारा प्रस्तुत कोई चिन्ह देखना चाहते हैं’’।

39) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’यह दुष्ट और विधर्मी पीढ़ी एक चिन्ह माँगती है, परंतु नबी योनस के चिन्ह को छोड़ कर कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।

40) जिस प्रकार योनस तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में रहा, उसी प्रकार मानव पुत्र भी तीन दिन और तीन रात पृथ्वी के गर्भ में रहेगा।

41) न्याय के दिन निनिवे के लोग इस पीढ़ी के साथ जी उठेंगे और इसे दोषी ठहरायेंगे, क्योंकि उन्होंने योनस का उपदेश सुन कर पश्चात्ताप किया था, और देखो यहाँ वह है, जो योनस से भी महान् हैं।

42) न्याय के दिन दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के साथ जी उठेगी और इसे दोषी ठहरायेगी; क्योंकि वह सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए पृथ्वी के सीमान्तों से आयी थी, और देखो-यहाँ वह है, जो सुलेमान से भी महान् है।