पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 10:17-11:2
17) यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।
18) जो अपनी सिफारिश करता है, वह नहीं, बल्कि जिसे प्रभु की सिफारिश प्राप्त है, वही सुयोग्य है।
11:1) ओह, यदि आप लोग मेरी थोड़ी-सी नादानी सह लेते! खैर, आप मुझ को अवश्य सहेंगे।
2) मैं जितनी तत्परता से आप लोगों की चिन्ता करता हूँ वह ईश्वर की चिन्ता जैसी है। मैंने आपके एकमात्र दुलहे मसीह के साथ आपका वाग्दान सम्पन्न किया, जिससे मैं आप को पवित्र कुँवारी की तरह उनके सामने प्रस्तुत कर सकूँ।
सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 25:1-13
1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।
2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।
3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।
4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।
5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर सब ऊँघने लगीं और सो गयीं।
6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’
7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।
8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।
9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’
10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।
11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।
12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ – मैं तुम्हें नहीं जानता’।
13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।