जून 07, 2023, बुधवार
वर्ष का नौवाँ सप्ताह
📒 पहला पाठ : टोबीत का ग्रन्थ 3:1-11, 16-17
1) मैं बड़ा दुःखी हो कर कराहते और आँसू बहाते हुए इस प्रकार प्रार्थना करने लगा,
2) “प्रभु! तू न्यायी है और तेरे समस्त कार्य न्यायपूर्ण हैं। तेरे सभी मार्ग दया और सच्चाई के हैं। तू संसार का न्याय करता है।
3) प्रभु! अब मुझे याद कर। मुझे मेरे पापों का दण्ड न दे। मेरे और मेरे पूर्वजों के अपराध भुला।
4) हम लोगों ने तेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, इसलिए हम लूट, निर्वासन एवं मृत्यु के शिकार बने हुए हैं और तूने हमें जिन राष्ट्रों में बिखेरा, वहाँ हम अपमानित हुए हैं।
5) प्रभु! तेरा दण्ड सही है; क्योंकि हमने तेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया और हम तेरे प्रति ईमानदार नहीं रहे।
6) इसलिए, प्रभु! जैसी तेरी इच्छा हो, मेरे साथ वैसा ही व्यवहार कर। मुझे उठा लेने की कृपा कर, क्योंकि मेरे लिए जीवन की अपेक्षा मरण अच्छा है। मैं झूठी निन्दा सुनते-सुनते तंग आ गया हूँ। मैं बड़ा दुःखी हूँ। प्रभु! मुझ से यह कष्ट दूर कर। मुझे अपने शाश्वत निवास में प्रवेश करने दे। प्रभु! मुझ से अपना मुख न छिपा। जीवन भर इस प्रकार का कष्ट सहते और निन्दा सुनते रहने की अपेक्षा मेरे लिए मरण अच्छा है।”
7) उसी दिन, मेदिया के एकबतना नामक नगर में, रागुएल की पुत्री सारा को भी अपने पिता की एक नौकरानी की फटकार सुननी पड़ी।
8) सारा का विवाह सात बार हुआ था और सारा के पति का संसर्ग होने के पहले ही अस्मादेव नामक पिशाच ने क्रमशः सातों को उसके पास आते ही मार डाला था। नौकरानी ने सारा से कहा, “पतियों की हत्यारिन! तुम को सात पति मिल चुके हैं और तुम किसी की नहीं बन सकी।
9) अपने मरे हुए पतियों के कारण हम को क्यों डाँटती हो? उनके पास चली जाओ। अच्छा हो कि हम तुम्हारे पुत्र या तुम्हारी पुत्री को कभी नहीं देखें।”
10) उस दिन सारा को बड़ा दुःख हुआ। वह रोते हुए पिता के घर की छत पर जा कर अपने को फाँसी लगाना चाहती थी। फिर वह सोचने लगी-कहीं ऐसा न हो कि लोग यह कहते हुए मेरे पिता का अपमान करें: “तुम्हारी एक ही प्यारी पुत्री थी और उसने अपने दुःख के कारण फाँसी लगा ली” और इस तरह मैं अपने बूढ़े पिता की मृत्यु का कारण बनूँगी। मेरे लिएक अच्छा यह है कि मैं अपने को फ़ाँसी न लगाऊँ, बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करूँ कि मैं मर जाऊँ, जिससे मुझे अपने जीवन में मर जाऊँ, जिससे मुझे अपने जीवन में और अपमान नहीं सुनना पड़े।
11) इसके बाद वह खिड़की के पास हाथ पसारे इस प्रकार प्रार्थना करने लगीः “दयालु प्रभु-ईश्वर! तू धन्य है। तेरा पवित्र और सम्मान्य नाम सदा-सर्वदा धन्य है। तेरे सभी कार्य सदा-सर्वदा तुझे धन्य कहें।
16) प्रभु-ईश्वर ने उन दोनों की प्रार्थनाएँ सुनीं।
17) स्वर्गदूत रफ़ाएल उनके पास भेजा गया, जिससे वह उन दोनों को स्वस्थ करे-वह टोबीत का मोतियाबिन्द दूर करे और रागुएल की बेटी सारा का विवाह टोबीत के पुत्र टोबीयाह से कराये। साथ ही अस्मादेव पिशाच को बन्दी बना ले; क्योंकि सारा टोबीयाह की होने जा रही थी। इधर टोबीत घर लौटा और उधर रागुएल की पुत्री सारा छत से नीचे उतरी।
📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 12:18-27
18) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि पुनरुत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,
19) “गुरुवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया- यदि किसी का भाई, अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह उसकी विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।
20) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।
21) दूसरा उसकी विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गया। तीसरे के साथ भी वही हुआ,
22) और सातों भाई निस्सन्तान मर गये। सब के बाद वह स्त्री भी मर गयी।
23) जब वे पुनरुत्थान में जी उठेंगे, तो वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।”
24) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “कहीं तुम लोग इसीलिए तो भ्रम में नहीं पड़े हुए हो कि तुम न तो धर्मग्रन्थ जानते हो और न ईश्वर का सामर्थ्य?
25) क्योंकि जब वे मृतकों में से जी उठते हैं, तब न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती है; बल्कि वे स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं।
26) “जहाँ तक पुनरुत्थान का प्रश्न है, क्या तुम लोगों ने मूसा के ग्रन्थ में, झाड़ी की कथा में, यह नहीं पढ़ा कि ईश्वर ने मूसा से कहा- मैं इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर हूँ?
27) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है। यह तुम लोगों का भारी भ्रम है।“