जून 11, 2023, इतवार
येसु के पवित्रतम शरीर और रक्त का महोत्सव (Corpus Christi)
📒 पहला पाठ : विधि-विवरण 8:2-3, 14-16
2) मरुभूमि में इन चालीस वर्षों की वह यात्रा याद रखो, जिसके लिए तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम लोगों को बाध्य किया था। उस ने तुम्हें दीन-हीन बनाने के लिए ऐसा किया, तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए, तुम्हारा मनोभाव पता लगाने के लिए और इस प्रकार यह जानने के लिए कि तुम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हो या नहीं।
3) उसने तुम्हे त्रस्त किया, भूखा रखा फिर तुम्हें मन्ना भी खिलाया, जिसे न तुम जानते थे और न तुम्हारे पूर्वज ही। इससे उसने तुमको यह समझाना चाहा कि मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।
14) तो तुम घमण्डी बन जाओ और अपने प्रभु ईश्वर को भूल जाओ। उसने तुम लोगो को मिस्र देश से – दासता के घर से – निकाल लिया।
15) उसने इस विशाल भयंकर मरुभूमि में विषैले साँपो, बिच्छुओं और प्यास के देश में तुम्हारा पथप्रदर्शन किया। उसने इस जलहीन स्थल में तुम्हारे लिए कठोर चट्टान से पानी निकाला।
16) उसने तुम लोगों को इस मरुभूमि मे मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पूर्वज नहीं जानते थे। उसने तुम लोगों का घमण्ड तोड़ने के लिए और तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया, जिससे आगे चल कर तुम्हारा कल्याण हो।
📕 दूसरा पाठ : 1कुरिन्थियों 10:16-17
16) क्या आशिष का प्याला, जिस पर हम आशिष की प्रार्थना पढ़ते हैं, हमें मसीह के रक्त का सहभागी नहीं बनाता? क्या वह रोटी, जिसे हम तोड़ते हैं, हमें मसीह के शरीर का सहभागी नहीं बनाती?
17) रोटी तो एक ही है, इसलिए अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं।
📙 सुसमाचार : योहन 6:51-58
51) स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।”
52) यहूदी आपस में यह कहते हुए वाद विवाद कर रहे थे, “यह हमें खाने के लिए अपना मांस कैसे दे सकता है?”
53) इस लिए ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा।
54) जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है और मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा;
55) क्योंकि मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय।
56) जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में निवास करता है और मैं उस में।
57) जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है, उसी तरह जो मुझे खाता है, उसको मुझ से जीवन मिलेगा। यही वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी है।
58) यह उस रोटी के सदृश नहीं है, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने खायी थी। वे तो मर गये, किन्तु जो यह रोटी खायेगा, वह अनन्त काल तक जीवित रहेगा।”