जून 16, 2023, शुक्रवार
येसु के पवित्रतम हृदय का महोत्सव
📒 पहला पाठ : विधि-विवरण 7:6-11
6) तुम लोग अपने प्रभु – ईश्वर की पवित्र प्रजा हो। हमारे प्रभु – ईश्वर ने पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों में से तुम्हें अपनी निजी प्रजा चुना है।
7) प्रभु ने तुम्हें इसलिए नहीं अपनाया और चुना है कि तुम्हारी संख्या दूसरो राष्ट्रों से अधिक थी – तुम्हारी संख्या तो सब राष्ट्रों से कम थी।
8) प्रभु ने तुम्हें प्यार किया और तुम्हारे पूर्वजों को दी गई शपथ को पूरा किया, इसलिए प्रभु ने तुम्हें अपने भुज-बल से निकाला और दासता के घर से, मिस्र देश के राजा फ़िराउन के हाथ से छुड़ाया है।
9) इसलिए याद रखो कि तुम्हारा प्रभु ईश्वर सच्चा और सत्यप्रतिज्ञ ईश्वर है। जो लोग उसे प्यार करते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, वह उनके लिए हज़ार पीढ़ियों तक अपनी प्रतिज्ञा और अपनी कृपा बनाये रखता है।
10) जो लोग उसका तिरस्कार करते है, वह उन्हें दण्ड देता और उनका विनाश करता है। जो व्यक्ति उसका तिरस्कार करता है, वह उसको दण्ड़ देने में देर नहीं करता।
11) इसलिए जो आदेश नियम और विधि-निषेध मैं आज तुम्हारे सामने रख रहा हूँ, तुम लोग उनका पालन करो।
📕 दूसरा पाठ : 1योहन 4:7-16
7) प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है।
8) जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता; क्येोंकि ईश्वर प्रेम है।
9) ईश्वर हम को प्यार करता है। यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें।
10) ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।
11) प्रयि भाइयो! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।
12) ईश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है।
13) यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है।
14) पिता ने अपने पुत्र को संसार के मुक्तिदाता के रूप में भेजा। हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं।
15) जो यह स्वीकार करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में।
16) इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में दृढ़ रहता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में।
📙 सुसमाचार : मत्ती 11:25-30
25) उस समय ईसा ने कहा, “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है।
26) हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा।
27) मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर कोई भी पुत्र को नहीं जानता। इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है और वही, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।
28) “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।
29) मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे,
30) क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।”