जून 25, 2023, इतवार
बारहवाँ समान्य इतवार
📒 पहला पाठ : यिरमियाह 20:10-13
10) मैंने बहुतों को यह फुसफुसाते हुए सुना है- “चारों ओर आतंक फैला हुआ हैं। उस पर अभियोग लगाओ! हम उस पर अभियोग लगायें“। जो पहले मेरे मित्र थे, वे सब इस ताक में रहते हैं कि मैं कोई ग़लती कर बैठूँ और कहते हैं, “वह शायद भटक जायेगा और हम उस पर हावी हो कर उस से बदला लेंगे”।
11) परन्तु प्रभु एक पराक्रमी शूरवीर की तरह मेरे साथ हैं। मेरे विरोधी ठोकर खा कर गिर जायेंगे। वे मुझ पर हावी नहीं हो पायेंगे और अपनी हार का कटु अनुभव करेंगे। उनका अपयश सदा बना रहेगा।
12) विश्वमण्डल के प्रभु! तू धर्मी की परीक्षा करता और मन तथा हृदय की थाह लेता है। मैं अपने को तुझ पर छोड़ता हूँ। मैं दूखूँगा कि तू उन लोगों से क्या बदला लेता है।
13) प्रभु का गीत गाओ! प्रभु की स्तुति करो! क्योंकि वह दरिद्रों के प्राणों को दुष्टों के हाथ से छुडाता है।
📕 दूसरा पाठ : रोमियों 5:12-15
12) एक ही मनुष्य द्वारा संसार में पाप का प्रवेश हुआ और पाप द्वारा मृत्यु का। इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गयी, क्योंकि सब पापी है।
13) मूसा की संहिता से पहले संसार में पाप था, किन्तु संहिता के अभाव में पाप का लेखा नहीं रखा जाता हैं।
14) फिर भी आदम से ले कर मूसा तक मृत्यु उन लोगों पर भी राज्य करती रही, जिन्होंने आदम की तरह किसी आज्ञा के उल्लंघन द्वारा पाप नहीं किया था। आदम आने वाले मुक्तिदाता का प्रतीक था।
15) फिर भी आदम के अपराध तथा ईश्वर के वरदान में कोई तुलना नहीं हैं। यह सच है कि एक ही मनुष्य के अपराध के कारण बहुत-से लोग मर गये; किंतु इस परिणाम से कहीं अधिक महान् है ईश्वर का अनुग्रह और वह वरदान, जो एक ही मनुष्य-ईसा मसीह-द्वारा सबों को मिला है।
📙 सुसमाचार : मत्ती 10:26-33
26) “इसलिए उन से नहीं डरो। ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा।
27) मैं जो तुम से अंधेरे में कहता हूँ, उसे तुम उजाले में सुनाओ। जो तुम्हें फुस-फुसाहटों में कहा जाता है, उसे तुम पुकार-पुकार कर कह दो।
28) उन से नहीं डरो, जो शरीर को मार डालते हैं, किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते, बल्कि उससे डरो, जो शरीर और आत्मा दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।
29) “क्या एक पैसे में दो गौरैयाँ नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता के अनजाने में उन में से एक भी धरती पर नहीं गिरती।
30) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल-बाल गिना हुआ है।
31) इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।
32) “जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने स्वीकार करूँगा।
33) जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गिक पिता के सामने अस्वीकार करूँगा।