शोकगीत

अध्याय : 12345 पवित्र बाईबल

अध्याय 1

1 वह नगरी अब कैसी वीरान हो गयी है, जो कभी लोगों से भरी रहती थी! वह किस तरह विधवा-जैसी हो गयी है, वह, जो राष्ट्रों में महान् थी! वह, जो कभी नगरों की राजकुमारी थी, दासी-जैसी हो गयी है।

2 वह रात में फूट-फूट कर रोती है, उसके कपोलों पर आँसू बहते रहते हैं। उसके इतने सारे प्रेमियों में कोई भी उसे सान्त्वना नहीं देता। उसके सभी मित्रों ने उसके साथ विश्वासघात किया है। वे उसके शत्रु हो गये हैं।

3 विपत्ति और असहनीय दासता से ग्रस्त हो कर यूदा निर्वासित हो गया है। वह राष्ट्रों में निवास कर रहा है। उसे कहीं ठहराव नहीं मिल रहा है। बन्द गलियों में उसका पीछा करने वालों ने उसे पकड़ लिया है।

4 सियोन की सड़कें विलाप करती हैं, क्योंकि पर्व मनाने कोई नहीं आता। उसके सब फाटक उजाड़ पड़े हैं। उसके याजक कराह रहे हें। उसकी कन्याएँ आह भरती हैं। वह स्वयं बहुत दुःख झेल रही है।

5 उसके शत्रु उसकी स्वामी हो गये हैं, उसके बैरी आनन्द मना रहे हैं; क्योंकि उसके अनेकानेक अपराधों के कारण उसके प्रभु ने उसे दण्डित किया है। उसके शत्रुओं के सामने बंदी बन कर उसके बच्चे चले गये हैं।

6 सियोन की पुत्री का प्रताप उस से विदा हो गया है। उसके राज्याधिकारी उन हरिणों-जैसे हो गये हैं, जिनका कोई चरागाह नहीं रहा। अपना पीछा करने वालों के सामने बलहीन हो कर वे भाग रहे थे।

7 अपनी विपत्ति और कड़वाहट के दिनों में येरूसालेम को याद आता है वह समस्त वैभव, जो प्राचीन काल से ही उसका था। जब उसके लोग शत्रुओं के हाथ पड़ गये और उसका कोई सहायक नहीं रहा, तो उसके शत्रुओं ने उसे देखा और वे उसके पतन पर हँस पड़े।

8 येरूसालेम ने भयानक पाप किये, इसलिए वह अपवित्र हो गया। जो सब उसका सम्मान करते थे, वे उसका तिरस्कार करते हैं, क्योंकि उन्होंने उसकी नग्नता देखी है। वह स्वयं भी कराहता रहता है और अपना मुँह छिपा रहा है।

9 उसका कलंक उसके वस्त्रों में लग गया है। उसने अपने विनाश की चिन्ता नहीं की। उसका पतन इतना भयावह है; उसे कोई ढारस तक नहीं बँधाता। “प्रभु मेरे कष्टों पर ध्यान दे, क्योंकि शत्रु विजयी हो गये हैं!“

10 उसके धन-कोषों की ओर शत्रुओं ने अपने हाथ बढ़ा दिये हैं। उसने उन राष्ट्रों को अपने पवित्र-मन्दिर में प्रवेश करते देखा है, जिन्हें तुमने अपनी सभा में आने से मना किया था।

11 उसके सभी लोग रोटी की खोज में भटकते हुए रोते हैं। अपने प्राणों की रक्षा के लिए वे अपने धन-कोष दे कर भोजन ख़रीदते हैं। “प्रभु! देख और ध्यान दे कि मेरा कितना तिरस्कार हो रहा है!“

12 “इस पथ से हो कर जाने वालो! आओ, देखो कि क्या मेरे-जैसा दुःख किसी और ने भोगा है, जो दुःख मुझ पर पड़ा है, जो अपने महाकोप के दिन प्रभु ने मुझे दिया है?

13 “उसने ऊपर से मुझ पर आग बरसायी, उसने मेरी हड्डियों में उसे डाल दिया। उसने मेरे पैरों के लिए जाल फैलाया और मुझे चित्त कर दिया। उसने मुझे उदास कर दिया; मैं सारा दिन पीड़ित रही।

14 “मेरे पाप एक जूआ बन गये- उसके हाथों ने उन को जोड़ दिया; वे मेरी गर्दन पर रख दिये गये। उसने मुझे शक्तिहीन कर दिया। प्रभु ने मुझे उन लोगों के हाथ कर दिया, जिनके सामने मैं टिक नहीं सकती।

15 “प्रभु ने मेरे यहाँ के सभी बलवानों का तिरस्तकार कर दिया। उसने मेरे युवकों को कुचलने मेरे विरुद्ध एक जनसमूह बुला भेजा। प्रभु ने यूदा की कुमारी पुत्री को जैसे रसकुण्ड में रौंद डाला।

16 “मैं इन्ही बातों पर रो रही हूँ: मेरी आँखें आँसू बहाती हैं। वे सभी मुझ से दूर हैं, जो मुझे सान्त्वता देते, जो मुझे में उत्साह भरते। मेरे बच्चे उजड़ गये हैं, क्योंकि शत्रुओं की विजय हो गयी है।“

17 सियोन अपने हाथ फैलाती है, लेकिन उसे कोई सान्त्वना नहीं देता। प्रभु ने याकूब के शत्रुओं को आदेश दिया कि वे उसे चारों ओर से घेर लें। येरूसालेम उनके बीच घृणित बन गया है।

18 “प्रभु ने न्याय किया है; क्योंकि मैंने उसके आदेश का पालन नहीं किया है। किन्तु समस्त राष्ट्रों! सुनो, मेरे दुःख पर ध्यान दो। मेरी युवतियों और मेरे युवकों को बन्दी बनाकर ले जाया गया है।

19 “मैंने अपने प्रेमियों को पुकारा, किन्तु उन्होंने मुझे धोखा दिया। मेरे याजक और नेता, जब वे अपने को जीवित रखने के लिए भोजन की खोज में भटक रहे थे, नगर में मर गये।

20 “प्रभु! देख, मैं कितनी वेदना में हूँ! मेरे प्राण व्याकुल हैं। मेरा हृदय मेरे भीतर छटपटाता है; क्योंकि मैं बराबर विद्रोही रही। बाहर तलवार मेरी सन्तान को मारती है। घर में मृत्यु नाचती है।

21 “सुन, मैं कैसे कराहती हूँ! मुझे कोई सान्त्वना नहीं देता। मेरे सभी शत्रुओं ने मेरी विपत्ति के विषय में सुना है। उन्हें प्रसन्नता है कि यह तूने किया है। तूने जिस दिन की घोषणा की है, उसे ला और उन को भी मुझ-जैसा बना दे।

22 “उनके सभी कुकर्मों पर ध्यान दे और मेरे सभी अपराधों के कारण तूने मेरे साथ जो किया है, वही उनके साथ कर; क्योंकि मेरी आहें असंख्य हैं मेरा हृदय खिन्न है।“