लेवी ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122 •  2324252627पवित्र बाईबल 

अध्याय 27

1 प्रभु ने मूसा से कहा,
2 ”इस्राएलियों से कहो कि यदि किसी ने प्रभु को एक मनुष्य अर्पित करने की मन्नत की है, तो उसके बदले उसे रुपया देना पड़ेगा :
3 बीस वर्ष से साठ वर्ष तक के पुरुष के लिए पवित्र शेकेल की तौल के अनुसार चाँदी के पचास शेकेल;
4 इसी उमर की स्त्री के लिए तीस शेकेल;
5 पाँच वर्ष से बीस वर्ष तक के लड़के के लिए बीस शेकेल, इसी उमर की लड़की के लिए दस शेकेल;
6 एक महीने से पाँच वर्ष तक के बच्चे के लिए चाँदी के पाँच शेकेल, इसी उमर की बच्ची के लिए चाँदी के तीन शेकेल;
7 साठ वर्ष और इस से ऊपर के पुरुष के लिए पन्द्रह शेकेल और इसी उमर की स्त्री के लिए दस शेकेल।
8 यदि कोई इतना निर्धन हो कि वह निर्धारित मूल्य न दे सके, तो वह उसे याजक के पास ले जाये और याजक उसका मूल्य निर्धारित करे। याजक मन्नत करने वाले के सामर्थ्य के अनुसार ही उसका मूल्य निर्धारित करेगा।
9 ”यदि मन्नत के रूप में प्रभु को एक पशु अर्पित किया गया है, तो प्रभु को अर्पित ऐसा पशु पवित्र माना जाये।
10 न तो कोई अन्य चीज़ उसके स्थान पर अर्पित की जा सकती है और न कोई दूसरा जानवर चढ़ाया जा सकता है – अच्छे पशु के बदले बुरा अर्पित नहीं किया जाये और न बुरे के लिए अच्छा। यदि कोई ऐसी अदला-बदली करे, तो दोनों पशु पवित्र माने जायेंगे।
11 यदि मन्नत का कोई पशु अपवित्र हो और प्रभु को बलि देने योग्य न हो, तो वह पशु याजक के पास ले जाया जाये।
12 याजक उसका मूल्य निर्धारित करे और उसके द्वारा निर्धारित मूल्य मान्य है।
13 यदि वह उसे छुड़ाना चाहे, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांश चुकाये।
14 “यदि कोई अपना घर प्रभु को मन्नत के रूप में अर्पित करे, तो याजक उसकी बनावट और स्थिति के अनुसार उसका मूल्य निर्धारित करे। याजक द्वारा निर्धारित मूल्य मान्य है।
15 यदि वह अपना वह घर छुड़ाना चाहे, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांश चुकाये।
16 “यदि कोई अपनी पैतृक सम्पत्ति की भूमि का कोई भाग मन्नत के रूप में प्रभु को अर्पित करे, तो उसका मूल्य-निर्धारण उस में बोये जाने वाले बीज के आधार पर
किया जाये – बोआई के बारह मन जौ के बीज के लिए चाँदी के पचास शेकेल।
17 यदि वह जयन्ती वर्ष में ही अपना खेत अर्पित करे, तो निर्धारित मूल्य पूरा-पूरा दिया जाये;
18 किन्तु यदि वह जयन्ती-वर्ष के बाद अपना खेत अर्पित करे, तो याजक आगामी जयन्ती वर्ष तक जितने वर्ष बाक़ी है, उनकी संख्या के अनुसार खेत का निर्धारित मूल्य कम करे।
19 यदि खेत अर्पित करने वाला स्वयं उसे छुड़ाना चाहता हो, तो निर्धारित मूल्य के अतिरिक्त उसका पंचमांश चुकाये। इसके बाद वह खेत उसका हो जायेगा।
20 किन्तु यदि वह उस खेत को बिना छुड़ाये ही किसी दूसरे को बेच देता है, तब वह खेत छुड़ाया नहीं जा सकता।
21 यदि जयन्ती-वर्ष में वह खेत मुक्त हो जाता है, तो वह प्रभु को पूर्ण-समर्पित खेत की तरह पवित्र समझा जायेगा। उस पर याजक का अधिकार हो जायेगा।
22 ”यदि कोई व्यक्ति मन्नत के रूप में प्रभु को ऐसा खेत अर्पित करे, जिसे उसने ख़रीदा हो और जो उसकी पैतृक सम्पत्ति न हो,
23 तो याजक जयन्ती-वर्ष आने में जितने वर्ष रह गये
हों, उनके आधार पर उस खेत का मूल्य निर्धारित करे। उसी दिन वह व्यक्ति निर्धारित मूल्य चुकाये। वह पवित्र है और उस पर प्रभु का अधिकार है।
24 जयन्ती-वर्ष में वह खेत फिर बेचने वाले का हो जायेगा; वह उसकी पैतृक सम्पत्ति है।
25 खेत का मूल्य पवित्र शेकेलों में दिया जायेगा। एक शेकेल में बीस गेरा होते हैं।
26 ”कोई भी पहलौठा पशु मन्नत के रूप में प्रभु को अर्पित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह तो प्रभु का है – चाहे वह गाय का हो, चाहे भेड़ का।
27 यदि वह अशुद्व पशु हो, तो निर्धारित मूल्य दे कर उसे छुड़ाया जा सकता है, किन्तु निर्धारित मूल्य का पाँचवाँ भाग और अधिक दिया जाये। यदि वह छुड़ाया नहीं जाता है, तो वह निर्धारित मूल्य पर बेच दिया जाये।
28 ”परन्तु जो कुछ प्रभु को पूर्ण-समर्पित किया जाता है, वह न तो बेचा और न छुड़ाया जा सकता है – चाहे वह मनुष्य हो, चाहे पशु या पैतृक खेत हो। जो कुछ प्रभु को पूर्ण रूप से समर्पित है, वह परमपवित्र है और प्रभु का है।
29 जो मनुष्य पूर्ण-समर्पित है, वह नहीं छुड़ाया जा सकता। उसका वध करना है।
30 ”भूमि का दशमांश – चाहे वह खेत की उपज का हो या वृक्षों के फलों का – प्रभु का है। वह प्रभु के लिए पवित्र माना जाये।
31 जो अपने दशमांश का कुछ छुड़ाना चाहे, वह उसके मूल्य का दशमांश जोड़ दे।
32 ढोरों और भेड़-बकरियों का प्रत्येक दसवाँ पशु, जो चरवाहे के सामने से गुजरता है, प्रभु के लिए पवित्र है।
33 उन में न अच्छे-बुरे पशु का ध्यान रखा जाये और न एक के बदले दूसरा दिया जाये। यदि कोई ऐसा ही करे, तो दोनों पशु पवित्र होंगे और नहीं छुड़ाये जा सकेंगे।”
34 यही वे आदेश हैं, जिन्हें प्रभु ने, मूसा के माध्यम से, सीनई पर्वत पर इस्राएलियों को दिया।