संत लूकस के अनुसार सुसमाचार
अध्याय: 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • पवित्र बाईबल
अध्याय 17
1 ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, “प्रलोभन अनिवार्य है, किन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो प्रलोभन का कारण बनता है!
2 उन नन्हों में एक के लिए भी पाप का कारण बनने की अपेक्षा उस मनुष्य के लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाटा बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।
3 इसलिए सावधान रहो।
“यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो उसे डाँटो और यदि वह पश्चात्ताप करता है, तो उसे क्षमा कर दो।
4 यदि वह दिन में सात बार तुम्हारे विरुद्ध अपराध करता और सात बार आ कर कहता है कि मुझे खेद है, तो तुम उसे क्षमा करते जाओ।”
5 प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ाइए”।
6 प्रभु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, ‘उखड़ कर समुद्र में लग जा’, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।
7 “यदि तुम्हारा सेवक हल जोत कर या ढोर चरा कर खेत से लौटता है, तो तुम में ऐसा कौन है, जो उससे कहेगा, “आओ, तुरन्त भोजन करने बैठ जाओ’?
8 क्या वह उस से यह नहीं कहेगा, ‘मेरा भोजन तैयार करो। जब तक मेरा खाना-पीना न हो जाये, कमर कस कर परोसते रहो। बाद में तुम भी खा-पी लेना’?
9 क्या स्वामी को उस नौकर को इसीलिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने उसकी आज्ञा का पालन किया है?
10 तुम भी ऐसे ही हो। सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद तुम को कहना चाहिए, ‘हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है’।”
11 ईसा येरूसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा-क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे।
12 किसी गाँव में प्रवेश करने पर उन्हें दस कोढ़ी मिले,
13 जो दूर खड़े हो गये और ऊँचे स्वर से बोले, “ईसा! गुरूवर! हम पर दया कीजिए”।
14 ईसा ने उन्हें देख कर कहा, “जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ”, और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये।
15 तब उन में से एक यह देख कर कि वह नीरोग हो गया है, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा।
16 वह ईसा को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था।
17 ईसा ने कहा, “क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाक़ी नौ कहाँ हैं?
18 क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?”
19 तब उन्होंने उस से कहा, “उठो, जाओ। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।”
20 जब फ़रीसियों ने उन से पूछा कि ईश्वर का राज्य कब आयेगा, तो ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “ईश्वर का राज्य प्रकट रूप से नहीं आता।
21 लोग नहीं कह सकेंगे, ‘देखो-वह यहाँ है’ अथवा, ‘देखो-वह वहाँ है’; क्योंकि ईश्वर का राज्य तुम्हारे ही बीच है।”
22 ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, “ऐसा समय आयेगा, जब तुम मानव पुत्र का एक दिन भी देखना चाहोगे, किन्तु उसे नहीं देख पाओगे।
23 लोग तुम से कहेंगे, ’देखो-वह यहाँ है’, अथवा, ‘देखो-वह वहाँ है’, तो तुम उधर नहीं जाओगे, उनके पीछे नहीं दौड़ोगे;
24 क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से निकल कर दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मानव पुत्र अपने दिन प्रकट होगा।
25 परन्तु पहले उसे बहुत दुःख सहना और इस पीढ़ी द्वारा ठुकराया जाना है।
26 “जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के दिनों में भी होगा।
27 नूह के जहाज़ पर चढ़ने के दिन तक लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। तब जलप्रलय आया और उसने सब को नष्ट कर दिया।
28 लोट के दिनों में भी यही हुआ था। लोग खाते-पीते, लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते रहे;
29 परन्तु जिस दिन लोट ने सोदोम छोड़ा, ईश्वर ने आकाश से आग और गंधक बरसायी और सब-के-सब नष्ट हो गये।
30 मानव पुत्र के प्रकट होने के दिन वैसा ही होगा।
31 “उस दिन जो छत पर हो और उसका सामान घर में हो, वह उसे ले जाने नीचे न उतरे और जो खेत में हो, वह भी घर न लौटे।
32 लोट की पत्नी को याद करो।
33 जो अपना जीवन सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा, वह उसे खो देगा, और जो उसे खो देगा, वह उसे सुरक्षित रखेगा।
34 “मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो एक खाट पर होंगे-एक उठा लिया जायेगा और दूसरा छोड़ दिया जायेगा।
35 दो स्त्रियाँ साथ-साथ चक्की पीसती होंगी-एक उठा ली जायेगी और दूसरी छोड़ दी जायेगी।”
36 “मैं तुम से कहता हूँ, दो खेत में होंगे-एक उठा लिया जायेगा और दूसरा छोड़ दिया जायेगा।
37 इस पर उन्होंने ईसा से पूछा, “प्र्रभु! यह कहाँ होगा?” उन्होंने उत्तर दिया, “जहाँ लाश होगी, वहाँ गीध भी इकट्ठे हो जायेंगे”।