मार्च 12, 2023, इतवार

चालीसा काल का तीसरा इतवार

📒 पहला पाठ : निर्गमन 17:3-7

3) लोगों को बड़ी प्यास लगी और वे यह कर मूसा के विरुद्ध भुनभुना रहे थे, ”क्या आप हमें इसलिए मिस्र से निकाल लाये कि हम अपने बाल-बच्चों और पशुओं के साथ प्यास से मर जायें?”

4) मूसा ने प्रभु की दुहाई दे कर कहा, ”मैं इन लोगों का क्या करूँ? ये मुझे पत्थरों से मार डालने पर उतारू हैं।”

5) प्रभु ने मूसा को यह उत्तर दिया, ”इस्राएल के कुछ नेताओं के साथ-साथ लोगों के आगे-आगे चलो। अपने हाथ में वह डण्डा ले लो, जिसे तुमने नील नदी पर मारा था और आगे बढ़ते जाओ।

6) मैं वहाँ होरेब की उस चट्टान पर तुम्हारे सामने खड़ा रहूँगा। तुम उस चट्टान पर डण्डे से प्रहार करो। उस से पानी फूट निकलेगा और लोगों को पीने को मिलेगा।” मूसा ने इस्राएल के नेताओं के सामने ऐसा ही किया।

7) उसने उस स्थान का नाम “मस्सा” और “मरीबा” रखा; क्योंकि इस्राएलियों ने उसके साथ विवाद किया था और यह कह कर ईश्वर को चुनौती दी थी, ईश्वर हमारे साथ है या नहीं?”

📕 दूसरा पाठ : रोमियों 5:1-2,5-8

1) ईश्वर ने हमारे विश्वास के कारण हमें धार्मिक माना है। हम अपने प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से मेल बनाये रखें।

2) मसीह ने हमारे लिए उस अनुग्रह का द्वार खोला है, जो हमें प्राप्त हो गया है। हम इस बात पर गौरव करें कि हमें ईश्वर की महिमा के भागी बनने की आशा है।

5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।

6) हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये।

7) धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये,

8) किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।

📙 सुसमाचार : योहन 4:5-42 अथवा 4:5-15,19-26, 39-42

5) वह समारिया के सुख़ार नामक नगर पहुँचे। यह उस भूमि के निकट है, जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ़ को दिया था।

6) वहाँ याकूब का झरना है। ईसा यात्रा से थक गये थे, इसलिए वह झरने के पास बैठ गये। उस समय दोपहर हो चला था।

7) एक समारी स्त्री पानी भरने आयी। ईसा ने उस से कहा, “मुझे पानी पिला दो”,

8) क्योंकि उनके शिष्य नगर में भोजन खरीदने गये थे। यहूदी लोग समारियों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते।

9) इसलिए समारी स्त्री ने उन से कहा, “यह क्या कि आप यहूदी हो कर भी मुझ समारी स्त्री से पीने के लिए पानी माँगते हैं?”

10) ईसा ने उत्तर दिया, “यदि तुम ईश्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है, जो तुम से कहता है- मुझे पानी पिला दो, तो तुम उस से माँगती और और वह तुम्हें संजीवन जल देता”।

11) स्त्री ने उन से कहा, “महोदय! पानी खींचने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं है और कुआँ गहरा है; तो आप को वह संजीवन जल कहाँ से मिलेगा?

12) क्या आप हमारे पिता याकूब से भी महान् हैं? उन्होंने हमें यह कुआँ दिया। वह स्वयं, उनके पुत्र और उनके पशु भी उस से पानी पीते थे।”

13) ईसा ने कहा, “जो यह पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी,

14) किन्तु जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में वह स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता है।“

15) इस पर स्त्री ने कहा, “महोदय! मुझे वह जल दीजिए, जिससे मुझे फिर प्यास न लगे और मुझे यहाँ पानी भरने नहीं आना पड़े”।

16) ईसा ने उस से कहा, “जा कर अपने पति को यहाँ बुला लाओ”।

17) स्त्री ने उत्तर दिया, “मेरा कोई पति नहीं नहीं है”। ईसा ने उस से कहा, “तुमने ठीक ही कहा कि मेरा कोई पति नहीं है।

18) तुम्हारे पाँच पति रह चुके हैं और जिसके साथ अभी रहती हो, वह तुम्हारा पति नहीं है। यह तुमने ठीक ही कहा।”

19) स्त्री ने उन से कहा, “महोदय! मैं समझ गयी- आप नबी हैं।

20) हमारे पुरखे इस पहाड़ पर आराधना करते थे और आप लोग कहते हैं कि येरूसालेम में आराधना करनी चाहिए।”

21) ईसा ने उस से कहा, “नारी ! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह समय आ रहा है, जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर पिता की आराधना करोगे और न येरूसोलेम में ही।

22) तुम लोग जिसकी आराधना करते हो, उसे नहीं जानते। हम लोग जिसकी आराधना करते हैं, उसे जानते हैं, क्योंकि मुक्ति यहूदियों से ही प्रारम्भ होती हैं

23) परन्तु वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे ही आराधकों को चाहता है।

24) ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें।”

25) स्त्री ने कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह, जो खीस्त कहलाते हैं, आने वाले हैं। जब वे आयेंगे, तो हमें सब कुछ बता देंगे।”

26) ईसा ने उस से कहा, “मैं, जो तुम से बोल रहा हूँ, वहीं हूँ”।

27) उसी समय शिष्य आ गये और उन्हें एक स्त्री के साथ बातें करते देख कर अचम्भे में पड़ गये; फिर भी किसी ने यह नहीं कहा, ‘इस से आप को क्या?’ अथवा ‘आप इस से क्यों बातें करते हैं?’

28) उस स्त्री ने अपना घड़ा वहीं छोड़ दिया और नगर जा कर लोगों से कहा,

29) “चलिए, एक मनुष्य को देखिए, जिसने मुझे वह सब जो मैंने किया, बता दिया है। कहीं वह मसीह तो नहीं हैं?”

30) इसलिए वे लोग नगर से निकल कर ईसा से मिलने आये।

31) इस बीच उनके शिष्य उन से यह कहते हुए अनुरोध करते रहे, “गुरुवर! खा लीखिए”।

32) उन्होंने उन से कहा, “खाने के लिए मेरे पास वह भोजन है, जिसके विषय में तुम लोग कुछ नहीं जानते”।

33) इस पर शिष्य आपस में बोले, “क्या कोई उनके लिए खाने को कुछ ले आया है?”

34) इस पर ईसा ने उन से कहा, “जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही भेरा भोजन है।

35) “क्या तुम यह नहीं कहते कि अब कटनी के चार महीने रह गये हैं? परन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ – आँखें उठा कर खेतों को देखो। वे कटनी के लिए पक चुके हैं।

36) अब तक लुनने वाला मजदूरी पाता और अनन्त जीवन के लिए फसल जमा करता है, जिससे बोने वाला और लुनने वाला, दोनों मिल कर आनन्द मनायें;

37) क्योंकि यहाँ यह कहावत ठीक उतरती है- एक बोता है और दूसरा लुनता है।

38) मैंने तुम लोगों को वह खेत लुनने भेजा, जिस में तुमने परिश्रम नहीं किया है- दूसरों ने परिश्रम किया और तुम्हें उनके परिश्रम का फल मिल रहा है।”

39) उस स्त्री ने कहा था- ‘उन्होंने मुझे वह सब, जो मैंने किया, बता दिया है-। इस कारण उस नगर के बहुत-से समारियों ने ईसा में विश्वास किया।

40) इसलिए जब वे उनके पास आये, तो उन्होंने अनुरोध किया कि आप हमारे यहाँ रहिए। वह दो दिन वहीं रहे।

41) बहुत-से अन्य लोगों ने उनका उपदेश सुन कर उन में विश्वास किया

42) और उस स्त्री से कहा, “अब हम तुम्हारे कहने के कारण ही विश्वास नहीं करते। हमने स्वयं सुन लिया है और हम जान गये है कि वह सचमुच संसार के मुक्तिदाता हैं।”