मार्च 24, 2023, शुक्रवार
चालीसे का चौथा सप्ताह
📒 पहला पाठ : प्रज्ञा 2:1, 12-22
1) विधर्मी कुतर्क करते हुए आपस में यह कहते थे: ‘‘हमारा जीवन अल्पकालिक और दुःखमय है।
12) ‘‘हम धर्मात्मा के लिए फन्दा लगायें, क्योंकि वह हमें परेशान करता और हमारे आचरण का विरोध करता है। वह हमें संहिता भंग करने के कारण फटकारता है और हम पर हमारी शिक्षा को त्यागने का अभियोग लगाता है।
13) वह समझता है कि वह ईश्वर को जानता है और अपने को प्रभु का पुत्र कहता है।
14) वह हमारे विचारों के लिए एक जीवित चुनौती है। उसे देखने मात्र से हमें अरूचि होती है।
15) उसका आचरण दूसरों-जैसा नहीं और उसके मार्ग भिन्न हैं।
16) वह हमें खोटा और अपवित्र समझ कर हमारे सम्पर्क से दूर रहता है। वह धर्मियों की अन्तगति को सौभाग्यशाली बताता और शेखी मारता है कि ईश्वर उसका पिता है।
17) हम यह देखें कि उसका दावा कहाँ तक सच है; हम यह पता लगायें कि अन्त में उसका क्या होगा।
18) यदि वह धर्मात्मा ईश्वर का पुत्र है, तो ईश्वर उसकी सहायता करेगा और उसे उसके विरोधियों के हाथ से छुड़ायेगा।
19) हम अपमान और अत्याचार से उसकी परीक्षा ले, जिससे हम उसकी विनम्रता जानें और उसका धैर्य परख सकें।
20) हम उसे घिनौनी मृत्यु का दण्ड दिलायें, क्योंकि उसका दावा है, कि ईश्वर उसकी रक्षा करेगा।‘‘
21) वे ऐसा सोचते थे, किन्तु यह उनकी भूल थी। उनकी दुष्टता ने उन्हें अन्धा बना दिया था।
22) वे ईश्वर के रहस्य नहीं जानते थे। वे न तो धार्मिकता के प्रतिफल में विश्वास करते थे और न धर्मात्माओें के पुरस्कार में।
📙 सुसमाचार : सन्त योहन 7:1-2, 10, 25-30
1) इसके बाद ईसा गलीलिया में ही घूमते रहे। वह यहूदिया में घूमना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहूदी उन्हें मार डालने की ताक में रहते थे।
2) यहूदियों का शिविर-पर्व निकट था।
10) बाद में, जब उनके भाई पर्व के लिए जा चुके थे, तो ईसा भी प्रकट रूप में नहीं, बल्कि जैसे गुप्त रूप में पर्व के लिए चल पड़े।
25) कुछ येरुसालेम-निवासी यह कहते थे, ‘‘क्या यह वही नहीं है, जिसे हमारे नेता मार डालने की ताक में रहते हैं?
26) देखो तो, यह प्रकट रूप से बोल रहा है और वे इस से कुछ नहीं कहते। क्या उन्होंने सचमुच मान लिया कि यह मसीह है?
27) फिर भी हम जानते हैं कि यह कहाँ का है; परन्तु जब मसीह प्रकट हो जायेंगे, तो किसी को यह पता नहीं चलेगा कि वह कहाँ के हैं।’’
28) ईसा ने मंदिर में शिक्षा देते हुए पुकार कर कहा, ‘‘तुम लाग मुझे भी जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ। जिसने मुझे भेजा है, वह सच्चा है। तुम लोग उसे नहीं जानते।
29) मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसके यहाँ से आया हूँ और उसीने मुझे भेजा है।’’
30) इस पर वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला; क्योंकि अब तक उनका समय नहीं आया था।