मार्च 26, 2023, इतवार

चालीसा काल का पाँचवाँ इतवार

📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल 37:12-14

12) तुम उन से कहोगे, ’प्रभु यह कहता है: मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।

13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया’।”

📕 दूसरा पाठ : रोमियों 8:8-11

8) जो लोग शरीर की वासनाओं से संचालित हैं, उन पर ईश्वर प्रसन्न नहीं होता।

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

10) यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्वरूप शरीर भले ही मर जाये, किन्तु पापमुक्ति के फलस्वरूप आत्मा को जीवन प्राप्त है।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।

📙 सुसमाचार : योहन 11:1-45 अथवा 11:3-7,17,20-27, 33-45

1) बेथानिया का निवासी लाज़रुस नामक व्यक्ति बीमार पड गया।

2) वेथानिया मरियम और उसकी बहन मरथा का गाँव था। यह वही मरियम थी, जिसने इत्र से प्रभु का विलेपन किया और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। उसका भाई लाज़रुस बीमार था।

3) इसलिये बहनों ने ईसा को कहला भेजा, प्रभु! देखिये, जिसे आप प्यार करते हैं, वह बीमार है।

4) ईसा ने यह सुनकर कहा, “यह बीमारी मृत्यु के लिये नहीं, बल्कि ईश्वर की महिमा के लिये आयी है। इसके द्वारा ईश्वर का पुत्र महिमान्वित होगा।”

5) ईसा मरथा, उसकी बहन मरियम और लाज़रुस को प्यार करते थे।

6) यह सुनकर कि लाज़रुस बीमार है, वे जहाँ थे, वहाँ और दो दिन रह गये।

7) किन्तु इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “आओ! हम फिर यहूदिया चलें”।

8) शिष्य बोले, “गुरुवर! कुछ ही दिन पहले तो यहूदी लोग आप को पत्थरों से मार डालना चाहते थे और आप फिर वहीं जा रहे हैं।”

9) ईसा ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घण्टें नहीं होते? जो दिन में चलता है, वह ठोकर नहीं खाता, क्योंकि वह इस दुनिया का प्रकाश देखता है।

10) परन्तु जो रात में चलता है, वह ठोकर खाता है, क्योंकि उसे प्रकाश नहीं मिलता।”

11) इतना कहने के बाद वे फिर उन से बोले, “हमारा मित्र लाज़रुस सो रहा है। मैं उसे जगाने जा रहा हूँ।”

12) शिष्यों ने कहा, “प्रभु! यदि वह सो रहा है तो अच्छा हो जायेगा।”

13) ईसा ने यह उसकी मृत्यु के विषय में कहा था, लेकिन उनके शिष्यों ने समझा कि वह नींद के विश्राम के विषय में कह रहे हैं।

14) इसलिये ईसा ने उन से स्पष्ट शब्दों में कहा, “लाजरुस मर गया है।

15) मैं तुम्हारे कारण प्रसन्न हूँ कि मैं वहाँ नहीं था, जिससे तुम लोग विश्वास कर सको। आओ, हम उसके पास चलें।”

16) इस पर थोमस ने, जो यमल कहलाता था, अपने सहशिष्यों से कहा, “हम भी चलें और इनके साथ मर जायें।”

17) वहाँ पहुँचने पर ईसा को पता चला कि लाजरुस चार दिनों से कब्र में है।

18) बेथानिया येरूसालेम से दो मील से भी कम दूर था,

19) इसलिये भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिये बहुत से यहूदी मरथा और मरियम से मिलने आये थे।

20) ज्यों ही मरथा ने यह सुना कि ईसा आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। मरियम घर में ही बैठी रहीं।

21) मरथा ने ईसा से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता

22) और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा।“

23) ईसा ने उसी से कहा “तुम्हारा भाई जी उठेगा“।

24) मरथा ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अंतिम दिन के पुनरुथान के समय जी उठेगा“।

25) ईसा ने कहा, “पुनरुथान और जीवन में हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा

26) और जो मुझ में विश्वास करते हुये जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?”

27) उसने उत्तर दिया, “हाँ प्रभु! मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।”

28) वह यह कह कर चली गयी और अपनी बहन मरियम को बुला कर उसने चुपके से उस से कहा, “गुरुवर आ गये हैं, तुम को बुलाते हैं।”

29) यह सुनते ही वह उठ खडी हुई और ईसा से मिलने गयी।

30) ईसा अब तक गाँव नहीं पहुँचें थे। वह उसी स्थान पर थे, जहाँ मरथा उन से मिली थी।

31) जो यहूदी लोग संवेदना प्रकट करने के लिये मरियम के साथ घर में थे, वे यह देख कर कि वह अचानक उठकर बाहर चली गयी उसके पीछे हो लिये क्योंकि वे समझते थे कि वह कब्र पर रोने जा रही है।

32) मरियम उस जगह पहुँची, जहाँ ईसा थे। उन्हें देखते ही वह उनके चरणेां पर गिर पडी और बोली, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नहीं मरता।”

33) ईसा उसे और उसके साथ आये हुये यहूदियों को रोते देखकर, बहुत व्याकुल हो उठे और आह भर कर

34) बोले तुम लोगों ने उसे कहाँ रखा हैं? उन्होनें कहा, “प्रभु! आइये और देखिये।”

35) ईसा रो पडे।

36) इस पर यहूदियों ने कहा, “देखो! वे उसे कितना प्यार करते थे”;

37) किन्तु कुछ लोगो ने कहा, “इन्होंने तो अन्धे को आँखें दी। क्या वे उस को मृत्यु से नही बचा सकते थे।”

38) कब्र के पास पहुँचने पर ईसा फिर बहुत व्याकुल हो उठे। वह कब्र एक गुफा थी जिसके मुँह पर एक बडा पत्थर रखा हुआ था।

39) ईसा ने कहा, पत्थर हटा दो। मृतक की बहन मरथा ने उन से कहा, “प्रभु! अब तो दुर्गन्ध आती होगी। आज चैथा दिन है।”

40) ईसा ने उसे उत्तर दिया, “क्या मैंने तुम से यह नहीं कहा कि यदि तुम विश्वास करोगी तो ईश्वर की महिमा देखोगी?”

41) इस पर लोगों ने पत्थर हटा दिया। ईसा ने आँखें उपर उठाकर कहा, “पिता! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ; तूने मेरी सुन ली है।

42) मैं जानता था कि तू सदा मेरी सुनता है। मैंने आसपास खडे लोगो के कारण ही ऐसा कहा, जिससे वे विश्वास करें कि तूने मुझे भेजा है।”

43) इतना कहने के बाद ईसा ने ऊँचें स्वर से पुकारा, “लाजरुस! बाहर निकल आओ!”

44) मृतक बाहर निकला। उसके हाथ और पैर पटिटयों से बँधे हुये थे और उसके मुख पर अँगोछा लपेटा हुआ था। ईसा ने लोगो से कहा, इसके बन्धन खोल दो और चलने-फिरने दो।

45) जो यहूदी मरियम से मिलने आये थे और जिन्होंने ईसा का यह चमत्कार देखा, उन में से बहुतों ने उन में विश्वास किया।