मार्च 28, 2023, मंगलवार

चालीसे का पाँचवाँ सप्ताह

📒 पहला पाठ : गणना ग्रन्थ 21:4-9

4) होर पर्वत से वे एदोमियों के देश के किनारे-किनारे चल कर लाल समुद्र की ओर आगे बढ़े। यात्रा करते-करते लोगों का धैर्य टूट गया

5) और वे यह कहते हुए ईश्वर और मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने लगे, ”आप हमें मिस्र देश से निकाल कर यहाँ मरुभूमि में मरने के लिए क्यों ले आये हैं? यहाँ न तो रोटी मिलती है और न पानी। हम इस रूखे-सूखे भोजन से ऊब गये हैं।”

6) प्रभु ने लोगों के बीच विषैले साँप भेजे और उनके दंष से बहुत-से इस्राएली मर गये।

7) तब लोग मूसा के पास आये और बोले, ”हमने पाप किया। हम प्रभु के विरुद्ध और आपके विरुद्ध भुनभुनाये। प्रभु से प्रार्थना कीजिए कि वह हमारे बीच से साँपों को हटा दे।” मूसा ने जनता के लिए प्रभु से प्रार्थना की

8) और प्रभु ने मूसा से कहा, ”काँसे का साँप बनवाओ और उसे डण्डे पर लगाओ। जो साँप द्वारा काटा गया, वह उसकी ओर दृष्टि डाले और वह अच्छा हो जायेगा।”

9) मूसा ने काँसे का साँप बनवाया और उसे डण्डे पर लगा दिया। जब किसी को साँप काटता था, तो वह काँसे के साँप की ओर दृष्टि डाल कर अच्छा हो जाता था।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 8:21-30

21) ईसा ने फिर लोगों से कहा, ‘‘मैं ज रहा हूँ। तमु लोग मुझे ढूँ़ढोगे, किन्तु तुम पाप की स्थिति में मर जाओगे। मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहाँ नहीं आ सकते।’’

22) इस पर यहूदियों ने कहा, ‘‘कहीं यह आत्महत्या तो नहीं करेगा? यह तो कहता है- ‘मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहाँ नहीं आ सकते’।’’

23) ईसा ने उन से कहा, ‘‘तुम लोग नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ। तुम इस संसार के हो, मैं इस संसार का नहीं हूँ।

24) इसलिए मैंने तुम से कहा कि तुम पाप की स्थिति में मर जाओगे। यदि तुम विश्वास नहीं करते कि मैं वही हूँ, तो तुम पाप की स्थिति में मर जाओगे।’

25) तब लोगों ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’ ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘इसके विषय में तुम लोगों से और क्या कहूँ?

26) मैं तुम लोगों को बहुत सी बातों में दोषी ठहरा सकता हूँ। किन्तु मैं संसार को वही बताता हूँ, जो मैंने उस से सुना है, जिसने मुझे भेजा; क्योंकि वह सच्चा है।’’

27) वे नहीं समझ रहे थे कि वे उन से पिता के विषय में कह रहे हैं।

28) इसलिए ईसा ने कहा, ‘‘जब तुम लोग मानव पुत्र को ऊपर उठाओगे, तो यह जान जाओगे कि मैं वही हूँ और मैं अपनी ओर से कुछ नहीं करता। मैं जो कुछ कहता हूँ, वैसे ही कहता हूँ, जैसे पिता ने मुझे सिखाया है।

29) जिसने मुझ को भेजा, वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सदा वही करता हूँ, जो उसे अच्छा लगता है।’’

30) बहुतों ने उन्हें यह सब कहते सुना और उन में विश्वास किया।