मार्च 29, 2023, बुधवार

चालीसे का पाँचवाँ सप्ताह

📒 पहला पाठ : दानिएल 3:14-20, 91-92,95

14) नबूकदनेज़र ने कहा, ’’शद्र्रक, मेशक और अबेदनगो! क्या यह बात सच है कि तुम लोग न तो मेरे देवताओं की सेवा करते और न मेरे द्वारा संस्थापित स्वर्ण-मूर्ति की आराधना करते हो?

15) क्या तुम लोग अब तुरही, वंशी, सितार, सारंगी, वीणा और सब प्रकार के वाद्यों की आवाज सुनते ही मेरी बनायी मूर्ति को दण्डवत कर उसकी आराधना करने तैयार हो? यदि तुम उसकी आराधना नहीं करोग, तो उसी समय प्रज्वलित भट्टी में डाल दिये जाओगे। तब कौन देवता तुम लोगों को मेरे हाथों से बचा सकेगा?”

16) शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने राजा नबूकदनेज़र को यह उत्तर दिया, ’’राजा! इसके सम्बन्ध में हमें आप से कुछ नहीं कहना है।

17) यदि कोई ईश्वर है, जो ऐसा कर सकता है, तो वह हमारा ही ईश्वर है, जिसकी हम सेवा करते हैं। वह हमें प्रज्वलित भट्टी से बचाने में समर्थ है और हमें आपके हाथों से छुडायेगा।

18) यदि वह ऐसा नहीं करेगा, तो राजा! यह जान लें कि हम न तो आपके देवताओं की सेवा करेंगे और न आपके द्वारा संस्थापित स्वर्ण-मूर्ति की आराधना ही।’’

19) यह सुन कर नबूकदनेज़र शद्रक, मेशक और अबेदनगो पर बहुत क्रुद्ध हो गया और उसके चेहरे का रंग बदल गया। उसने भट्टी का ताप सामान्य से सात गुना अधिक तेज करने की आज्ञा दी

20) और अपनी सेना से कुछ बलिष्ठ जवानों को आदेश दिया कि वे शद्रक, मेशक और अबेदनगो को बाँध कर प्रज्वलित भट्टी में डाल दें।

91) राजा नबूकदनेज़र बड़े अचम्भे में पड गया। वह घबरा कर उठ खड़ा हुआ और अपने दरबारियों से बोला, “क्या हमने तीन व्यक्तियों को बाँध कर आग में नहीं डलवाया?“ उन्होंने उत्तर दिया, “राजा! आप ठीक कहते हैं“।

92) इस पर उसने कहा, “मैं तो चार व्यक्तियों को मुक्त हो कर आग में सकुशल टहलते देख रहा हूँ। चैथा स्वर्गदूत-जैसा दिखता है।

95) तब नबूकदनेज़र बोल उठा, “धन्य है शद्रक, मेशक और अबेदनगो का ईश्वर! उसने अपने दूत को भेजा है, जिससे वह उसके उन सेवकों की रक्षा करे, जिन्होंने ईश्वर पर भरोसा रख कर राजाज्ञा का उल्लंघन किया और अपने शरीर अर्पित कर दिये; क्योंकि वे अपने ईश्वर को छोड कर किसी अन्य देवता की सेवा या आराधना नहीं करना चाहते थे।

📚 सुसमाचार : सन्त योहन 8:31-42

31) जिन यहूदियों ने उन में विश्वास किया, उन से ईसा ने कहा, “यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे।

32) तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतन्त्र बना देगा।’’

33) उन्होंने उत्तर दिया, “हम इब्राहीम की सन्तान हैं, हम कभी किसी के दास नहीं रहे। आप यह क्या कहते हैं- तुम स्वतन्त्र हो जाओगे?’’

34) ईसा ने उन से कहा, “मै तुम से यह कहता हूँ- जो पाप करता है, वह पाप का दास है।

35) दास सदा घर में नहीं रहता, पुत्र सदा रहता है।

36) इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतन्त्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतन्त्र होगे।

37) “मैं जानता हूँ कि तुम लोग इब्राहीम की सन्तान हो। फिर भी तुम मुझे मार डालने की ताक में रहते हो, क्योंकि मेरी शिक्षा तुम्हारे हृदय में घर नहीं कर सकी।

38) मैंने अपने पिता के यहाँ जो देखा है, वही कहता हूँ और तुम लोगों ने अपने पिता के यहाँ जो सीखा है, वही करते हो।’’ उन्होंने उत्तर दिया, “इब्राहीम हमारे पिता हैं’’।

39) इस पर ईसा ने उन से कहा, “यदि तुम इब्राहीम की सन्तान हो, तो इब्राहीम-जैसा आचरण करो।

40) अब तो तुम मुझे इसलिए मार डालने की ताक में रहते हो कि मैंने जो सत्य ईश्वर से सुना, वह तुम लोगों को बता दिया। यह इब्राहीम-जैसा आचरण नहीं है।

41) तुम लोग तो अपने ही पिता-जैसा आचरण करते हो।’’ उन्होंने ईसा से कहा, “हम व्यभिचार से पैदा नहीं हुए। हमारा एक ही पिता है और वह ईश्वर है।’’

42) ईसा ने यहूदियों से कहा, “यदि ईश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझे प्यार करते, क्योंकि मैं ईश्वर से उत्पन्न हुआ हूँ और उसके यहाँ से आया हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ, मुझे उसी ने भेजा है।