संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार
अध्याय: 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • पवित्र बाईबल
अध्याय 23
1 उस समय ईसा ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा,
2 “शास्त्री और फ़रीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,
3 इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वह करते और मानते रहो; परन्तु उनके कर्मों का अनुसरण न करो,
4 क्योंकि वे कहते तो हैं, पर करते नहीं। वे बहुत-से भारी बोझ बाँध कर लोगों के कन्धों पर लाद देते हैं, परन्तु स्वंय उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते।
5 वे हर काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही करते हैं। वे अपने तावीज चौड़े और अपने कपड़ों के झब्बे लम्बे कर देते हैं।
6 भोजों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना,
7 बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरुवर कहलाना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।
8 “तुम लोग ’गुरुवर’ कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है और तुम सब-के-सब भाई हो।
9 पृथ्वी पर किसी को अपना ’पिता’ न कहो, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।
10 ’आचार्य’ कहलाना भी स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह।
11 जो तुम लोगों में से सब से बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने।
12 जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।
13 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग का राज्य बन्द कर देते हो।
14 तुम स्वयं प्रवेश नहीं करते और जो प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें रोक देते हो।
15 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! एक चेला बनाने के लिए तुम जल और थल लाँघ जाते हो और जब वह चेला बन जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकी बना देते हो।
16 “अन्धे नेताओं! धिक्कार तुम लोगों को! तुम कहते हो- यदि कोई मन्दिर की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नहीं; परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है।
17 मूर्खों और अन्धों! कौन बड़ा है- सोना अथवा मन्दिर, जिस से वह सोना पवित्र हो जाता है?
18 तुम यह भी कहते हो- यदि कोई वेदी की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नही; परन्तु यदि कोई वेदी पर रखे हुए दान की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है।
19 अन्धो! कौन बड़ा है- दान अथवा वेदी, जिस से वह दान पवित्र हो जाता है?
20 इसलिए जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी और उस पर रखी हुई चीज़ों की शपथ खाता है।
21 जो मन्दिर की शपथ खाता है, वह उसकी और उस में निवास करने वाले की शपथ खाता है
22 और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह ईश्वर के सिंहासन और उस पर बैठने वाले की शपथ खाता है।
23 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुदीने, सौंफ और जीरे का दशमांश तो देते हो, किन्तु न्याय, दया और ईमानदारी, संहिता की मुख्य बातों की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था।
24 अन्धे नेताओ! तुम मच्छर छानते हो, किन्तु ऊँट निगल जाते हो।
25 “ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम प्याले और थाली को बाहर से तो माँजते हो, किन्तु भीतर वे लूट और असंयम से भरे हुए हैं।
26 अन्धे फ़रीसी! पहले भीतर से प्याले को साफ़ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ़ हो जाये।
27 “ढोंगी शास्त्रियो ओर फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुती हुई कब्रों के सदृश हो, जो बाहर से तो सुन्दर दीख पड़ती हैं, किन्तु भीतर से मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गन्दगी से भरी हुई हैं।
28 इसी तरह तुम भी बाहर से लागों को धार्मिक दीख पड़ते हो, किन्तु भीतर से तुम पाखण्ड और अधर्म से भरे हुए हो।।
29 “ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम नबियों के मक़बरे बनवा कर और धर्मात्माओं के स्मारक सँवार कर
30 कहते हो, “यदि हम अपने पुरखों के समय जीवित होते, तो हम नबियों की हत्या करने में उनका साथ नहीं देते’।
31 इस तरह तुम लोग अपने विरुद्ध यह गवाही देते हो कि तुम नबियों के हत्यारों की सन्तान हो।
32 तो, अपने पुरखों की कसर पूरी कर लो।
33 “साँपों! करैतों के बच्चो! तुम लोग नरक के दण्ड से कैसे बचोगे?
34 देखो! मैं तुम्हारे पास नबियों, धर्म-पण्डितों और शास्त्रियों को भेजता हूँ। तुम उन में से कितने को मार डालोगे और क्रूस पर चढ़ाओगे, कितनों को अपने सभागृहों में कोड़े लगाओगे और नगर-नगर में सताते रहोगे,
35 जिससे पृथ्वी पर धर्मात्माओं का जितना रक्त बहाया गया- धर्मी हाबिल के रक्त से ले कर बरख़ीयस के पुत्र ज़करियस के रक्त तक, जिसे तुम लोगों ने मन्दिरगर्भ और वेदी के बीच मार डाला था- वह सब तुम्हारे सिर पड़े।
36 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ, यह सब इस पीढ़ी के सिर पड़ेगा।
37 “येरुसालेम! येरुसालेम! तू नबियों की हत्या करता है और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। मैंने कितनी बार चाहा कि तेरी सन्तान को वैसे ही एकत्र कर लूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इन्कार कर दिया।
38 देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा।
39 मैं तुम से कहता हूँ, अब से तुम मुझे नहीं देखोगे, जब तक तुम यह न कहोगे- धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।”