संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार
अध्याय: 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • पवित्र बाईबल
अध्याय 5
1 ईसा यह विशाल जनसमूह देख कर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आये
2 और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
3 “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं ! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
4 धन्य हैं वे जो नम्र हैं ! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
5 धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं ! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
6 धन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं ! वे तृप्त किये जायेंगे।
7 धन्य हैं वे, जो दयालु हैं! उन पर दया की जायेगी।
8 धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
9 धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
10 धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
11 “धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
12 खुश हो और आनन्द मनाओ- स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।
13 “तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फीका पड़ जाये, तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है।
14 “तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता।
15 लोग दीपक जला कर पैमाने के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखते हैं, जहाँ से वह घर के सब लोगों को प्रकाश देता है।
16 उसी प्रकार तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें।
17 “यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।
18 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- आकाश और पृथ्वी भले ही टल जाये, किन्तु संहिता की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी पूरा हुए बिना नहीं टलेगा।
19 इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा।
20 मैं तुम लोगों से कहता हूँ- यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।
21 “तुम लोगों ने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है- हत्या मत करो। यदि कोई हत्या करे, तो वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा।
22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ- जो अपने भाई पर क्रोध करता है, वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा। यदि वह अपने भाई से कहे, ’रे मूर्ख!’, तो वह महासभा में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा और यदि वह कहे, ’रे नास्तिक!’, तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जायेगा।
23 “जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँं याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है,
24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।
25 “कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायकर्ता के हवाले कर दे, न्यायकर्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।
26 मैं तुम से यह कहता हूँ- जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।
27 “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- व्यभिचार मत करो।
28 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है।
29 “यदि तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न डाला जाये
30 और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न जाये।
31 “यह भी कहा गया है- जो अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह उसे त्यागपत्र दे दे।
32 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- व्यभिचार को छोड़ किसी अन्य कारण से जो अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह उस से व्यभिचार कराता है और जो परित्यक्ता से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है।
33 “तुम लोगों ने यह भी सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है- झूठी शपथ मत खाओ। प्रभु के सामने खायी हुई शपथ पूरी करो।
34 परन्तु मैं तुम से कहता हूँः शपथ कभी नहीं खानी चाहिए- न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह ईश्वर का सिंहासन है;
35 न पृथ्वी की, क्योंकि वह उसका पावदान है; न येरुसालेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है
36 और न अपने सिर की, क्योंकि तुम इसका एक भी बाल सफेद या काला नहीं कर सकते।
37 तुम्हारी बात इतनी हो- हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। जो इस से अधिक है, वह बुराई से उत्पन्न होता है।
38 “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।
39 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।
40 जो मुक़दमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहता है, उसे अपनी चादर भी ले लेने दो
41 और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ।
42 जो तुम से माँगता है, उसे दे दो और जो तुम से उधार लेना चाहता है, उस से मुँह न मोड़ो।
43 “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।
44 परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।
45 इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की सन्तान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।
46 यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते?
47 और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बड़ा काम करते हो? क्या गै़र-यहूदी भी ऐसा नहीं करते?
48 इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।