मई 28, 2023, रविवार
पेन्तेकोस्त रविवार
📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 2:1-11
1) जब पेंतेकोस्त का दिन आया और सब शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे,
2) तो अचानक आँधी-जैसी आवाज आकाश से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा।
3) उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभाजित होकर उन में से हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी।
4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगे।
5) पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरुसालेम में रहते थे।
6) बहुत-से लोग वह आवाज सुन कर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोेलते सुन रहा था।
7) वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और चकित हो कर बोल उठे, ’’क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं है?
8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?
9) पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया और कम्पादुनिया, पोंतुस और एशिया,
10 फ्रुगिया और पप्फुलिया, मिश्र और कुरेने के निकवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी,
11) क्रेत और अरब के निवासी-हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान करते सुन रहे हैं।’’
📕 दूसरा पाठ : 1कुरिन्थियों 12:3-7,12-13
4) कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु आत्मा एक ही है।
5) सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही हैं।
6) प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर द्वारा सबों में सब कार्य सम्पन्न होते हैं।
7) वह प्रत्येक को वरदान देता है, जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे।
12) मनुष्य का शरीर एक है, यद्यपि उसके बहुत-से अंग होते हैं और सभी अंग, अनेक होते हुए भी, एक ही शरीर बन जाते हैं। मसीह के विषय में भी यही बात है।
13) हम यहूदी हों या यूनानी, दास हों या स्वतन्त्र, हम सब-के-सब एक ही आत्मा का बपतिस्मा ग्रहण कर एक ही शरीर बन गये हैं। हम सबों को एक ही आत्मा का पान कराया गया है।
📙 सुसमाचार : सन्त योहन 20:19-23
19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, “तुम्हें शांति मिले!”
20) और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, “तुम्हें शांति मिले!
21) जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।”
22) इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!
23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।