17 अक्टूबर 2022
वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह, सोमवार
पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-10
1) आप लोग अपने अपराधों और पापों के कारण मर गये थे;
2) क्योंकि आपका आचरण पहले इस संसार की रीति के अनुकूल, आकाश में विचरने वाले अपदूतों के नायक के अनुकूल था, उस आत्मा के अनुकूल था, जो अब तक ईश्वर के विरोधियों में क्रियाशील है।
3) हम सभी पहले उन विरोधियों में सम्मिलित थे, जब हम अपनी वासनाओं के वशीभूत हो कर अपने शरीर और मन की वासनाओं को तृप्त करते थे। हम दूसरों की तरह अपने स्वभाव के कारण ईश्वर के कोप के पात्र थे।
4) परन्तु ईश्वर की दया अपार है। हम अपने पापों के कारण मर गये थे, किन्तु उसने हमें इतना प्यार किया
5) कि उसने हमें मसीह के साथ जीवन प्रदान किया। उसकी कृपा ने आप लोगों का उद्धार किया।
6) उसने ईसा मसीह के द्वारा हम लोगों को पुनर्जीवित किया और स्वर्ग में बैठाया।
7) उसने ईसा मसीह में जो दयालुता दिखायी, उसके द्वारा उसने आगामी युगों के लिए अपने अनुग्रह की असीम समृद्धि को प्रदर्शित किया।
8) उसकी कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों का उद्धार किया है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो ईश्वर का वरदान है।
9) यह आपके किसी कर्म का पुरस्कार नहीं -कहीं ऐसा न हो कि कोई उस पर गर्व करे।
10) ईश्वर ने हमारी रचना की। उसने ईसा मसीह द्वारा हमारी सृष्टि की, जिससे हम पुण्य के कार्य करते रहें और उसी मार्ग पर चलते रहें, जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है।
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:13-21
13) भीड़ में से किसी ने ईसा से कहा, ’’गुरूवर! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दें’’।
14) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ’’भाई! किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया?’’
15) तब ईसा ने लोगों से कहा, ’’सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती’’।
16) फिर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, ’’किसी धनवान् की ज़मीन में बहुत फ़सल हुई थी।
17) वह अपने मन में इस प्रकार विचार करता रहा, ’मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ।
18) तब उसने कहा, ’मैं यह करूँगा। अपने भण्डार तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा
19) और अपनी आत्मा से कहूँगा-भाई! तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ।’
20) परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, ’मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका ह़ोगा?’
21) यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।’’