रविवार, 02 अक्टूबर 2022
वर्ष का सत्ताईसवाँ सामान्य रविवार
पहला पाठ : हबक्कूक 1:2-3;2:2-4
2) प्रभु! मैं कब तक पुकारता रहूँगा और तू अनसुनी करता रहेगा? मैं कब तक तेरी दुहाई देता रहूँगा और तू बचाने नहीं आयेगा?
3) तू क्यों मुझे पापाचार दिखाता है? क्यों मुझे अत्याचार देखना पडता है? लूटपात और हिंसा मेरे सामने हैं। चारों ओर लडाई-झगडे होते रहते हैं।
2:2) प्रभु ने उत्तर में मुझ से यह कहा, “जो दृश्य तुम देखने वाले हो, उसे स्पष्ट रूप से पाटियों पर लिखो, जिससे सब उसे सुगमता से पढ सकें;
3) क्योंकि वह भविय का दृश्य है, जो निश्चित समय पर पूरा होने वाला है। यदि उस में देर हो जाये, तो उसकी प्रतीक्षा करते रहो, क्योंकि वह अवश्य ही पूरा हो जायेगा। जो दृष्ट है, वह नष्ट हो जायेगा।
4) जो धर्मी है, वह अपनी धार्मिकता के कारण सुरक्षित रहेगा।
📒 दूसरा पाठ : 2तिमथी 1:6-8,13-14
6) मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है।
7) ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया।
8) तुम न तो हमारे प्रभु का साक्ष्य देने में लज्जा अनुभव करो और न मुझ से, जो उनके लिए बन्दी हूँ, बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर भरोसा रख कर तुम मेरे साथ सुसमाचार के लिए कष्ट सहते रहो।
13) जो प्रामाणिक शिक्षा तुम को मुझ से मिली, उसे अपना मापदण्ड मान लो और ईसा मसीह के प्रति विश्वास तथा प्रेम से दृढ़ बने रहो।
14) जो निधि तुम्हें सौंपी गयी, उसे हम में निवास करने वाले पवित्र आत्मा की सहायता से सुरक्षित रखो।
📚 सुसमाचार : सन्त लूकस 17:5-10
5) प्रेरितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ाइए”।
6) प्रभु ने उत्तर दिया, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, ‘उखड़ कर समुद्र में लग जा’, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।
7) “यदि तुम्हारा सेवक हल जोत कर या ढोर चरा कर खेत से लौटता है, तो तुम में ऐसा कौन है, जो उससे कहेगा, “आओ, तुरन्त भोजन करने बैठ जाओ’?
8) क्या वह उस से यह नहीं कहेगा, ‘मेरा भोजन तैयार करो। जब तक मेरा खाना-पीना न हो जाये, कमर कस कर परोसते रहो। बाद में तुम भी खा-पी लेना’?
9) क्या स्वामी को उस नौकर को इसीलिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने उसकी आज्ञा का पालन किया है?
10) तुम भी ऐसे ही हो। सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद तुम को कहना चाहिए, ‘हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है’।”