20 अक्टूबर 2022
वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह, गुरुवार
पहला पाठ : एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:14-21
14 (14-15) मैं उस पिता के सामने, जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर प्रत्येक परिवार का मूल आधार है, घुटने टेक कर यह प्रार्थना करता हूँ
16) कि वह अपने आत्मा द्वारा आप लोगों को अपनी अपार कृपानिधि से आभ्यन्तर शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें,
17) जिससे विश्वास द्वारा मसीह आपके हृदयों में निवास करें, प्रेम में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो।
18) इस तरह आप लोग अन्य सभी सन्तों के साथ मसीह के प्रेम की लम्बाई, चैड़ाई, ऊँचाई और गहराई समझ सकेंगे।
19) आप लोगों को उनके प्रेम का ज्ञान प्राप्त होगा, यद्यपि वह ज्ञाने से परे है। इस प्रकार आप लोग, ईश्वर की पूर्णता तक पहुँच कर, स्वयं परिपूर्ण हो जायेंगे।
20) जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य सम्पन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है,
21) उसी को कलीसिया और ईसा मसीह द्वारा पीढ़ी दर-पीढ़ी युग-युगों तक महिमा! आमेन!
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 12:49-53
49) ’’मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!
50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!
51) ’’क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।
52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।
53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।’’