29 अक्टूबर 2022
वर्ष का तीसवाँ सामान्य सप्ताह, शनिवार
पहला पाठ फ़िलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:18b-26
मैं इसी से आनन्दित हूँ। और मैं आनन्द मनाता ही रहूँगा,
19) क्योंकि मैं जानता हूँ कि आपकी प्रार्थनाओं और ईसा मसीह के आत्मा की सहायता द्वारा इन सब बातों का परिणाम यह होगा कि मैं मुक्त हो जाऊँगा।
20) मेरी हार्दिक अभिलाषा और आशा यह है कि चाहे मैं जीवित रहूँ या मरूँ, मुझे किसी बात पर लज्जित नहीं होना पड़ेगा और मसीह मुझ में महिमान्वित होंगे।
21) मेरे लिए तो जीवन है-मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति।
22) किन्तु यदि मैं जीवित रहूँ, तो सफल परिश्रम कर सकता हूँ, इसलिए मैं नहीं समझ पाता कि क्या चुनूँ।
23) मैं दोनों ओर खिंचा हुआ हूँ। मैं तो चल देना और मसीह के साथ रहना चाहता हूँ। यह निश्चय ही सर्वोत्तम है;
24) किन्तु शरीर में मेरा विद्यमान रहना आप लोगों के लिए अधिक हितकर है।
25) मुझे पक्का विश्वास है कि मैं आपके साथ रह कर आपकी सहायता करूँगा, जिससे आपकी प्रगति हो और विश्वास में आपका आनन्द बढ़े।
26) इस प्रकार जब मैं फिर आपके यहाँ आऊँगा, तो आप मेरे कारण ईसा मसीह पर और भी गौरव कर सकेंगे।
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 14:1,7-11
1) ईसा किसी विश्राम के दिन एक प्रमुख फ़रीसी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी निगरानी कर रहे थे।
7) ईसा ने अतिथियों को मुख्य-मुख्य स्थान चुनते देख कर उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया,
8) “विवाह में निमन्त्रित होने पर सब से अगले स्थान पर मत बैठो। कहीं ऐसा न हो कि तुम से प्रतिष्ठित कोई अतिथि निमन्त्रित हो
9) और जिसने तुम दोनों को निमन्त्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, ’इन्हें अपनी जगह दीजिए’ और तुम्हें लज्जित हो कर सब से पिछले स्थान पर बैठना पड़े।
10) परन्तु जब तुम्हें निमन्त्रण मिले, तो जा कर सब से पिछले स्थान पर बैठो, जिससे निमन्त्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, ’बन्धु! आगे बढ़ कर बैठिए’। इस प्रकार सभी अतिथियों के सामने तुम्हारा सम्मान होगा;
11) क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।”