फ़िलिप्पियों के नाम पत्र
अध्याय: 1 • 2 • 3 • 4 • पवित्र बाईबल
अध्याय 1
1 फिलिप्पी में रहने वाले ईसा मसीह के सब सन्तों और उसके अध्यक्षों तथा धर्मसेवकों के नाम ईसा मसीह के सेवक पौलुस और तिमथी का पत्र।
2 हमारा पिता ईश्वर और प्रभु ईसा मसीह आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति प्रदान करें!
3 जब-जब मैं आप लोगों को याद करता हूँ, तो अपने ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।
4 मैं हमेशा अपनी हर प्रार्थना में आनन्द के साथ आप सबों के लिए विनती करता हूँ;
5 क्योंकि आप प्रारम्भ से अब तक सुसमाचार के कार्य में सहयोग देते आ रहे हैं।
6 जिसने आप लोगों में यह शुभ कार्य आरम्भ किया, वह उसे ईसा मसीह के आगमन के दिन तक पूर्णता तक पहुँचा देगा। इसका मुझे पक्का विश्वास है।
7 आप सबों के विषय में मेरा यह विचार उचित है- आप मेरे हृदय में बस गये हैं, क्योंकि जब मैं कै़द में हूँ या अदालत में सुसमाचार की सच्चाई का साक्ष्य देता हूँ, तो आप सब मेरे सौभाग्य के सहभागी हो जाते हैं।
8 ईश्वर जानता है कि मैं ईसा मसीह के प्रेम से प्रेरित हो कर आप लोगों को कितना चाहता हूँ।
9 ईश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि आपका प्रेम, ज्ञान तथा हर प्रकार की अन्तर्दृष्टि में, बराबर बढ़ता जाये,
10 जिससे जो श्रेय है, आप उसे पहचानें और प्यार करें। इस तरह आप लोग मसीह के आगमन के दिन पवित्र तथा निर्दोष होंगे।
11 और ईश्वर की महिमा तथा प्रशंसा के लिए ईसा मसीह के द्वारा परिपूर्ण धार्मिकता तक पहुँच जायेंगे।
12 भाइयो! मैं आप लोगों को बता देना चाहता हूँ कि मुझ पर जो बीता है, वह सुसमाचार के प्रचार में बाधक नहीं, बल्कि सहायक सिद्ध हुआ।
13 राजभवन और जनसाधारण में यह बात अब सब जगह फैल गयी है कि मैं मसीह के कारण बन्दी हूँ।
14 अधिकांश भाइयो को मेरी कैद से बल मिला है। वे प्रभु पर भरोसा रख कर पहले से अधिक साहस के साथ निर्भीकता से ईश्वर का वचन सुनाते हैं।
15 कुछ लोग तो ईर्ष्या एवं स्पद्र्धा से ऐसा करते हैं और कुछ लोग सद्भाव से मसीह का प्रचार करते हैं।
16 ये लोग प्रेम से प्रेरित हो कर ऐसा करते ये जानते हैं कि मैं सुसमाचार की रक्षा के कारण कैदी हूँ।
17 किन्तु वे लोग प्रतिस्पद्र्धा से प्रेरित हो कर शुद्ध उद्देश्य से मसीह का प्रचार नहीं करते। वे समझते हैं कि वे इस प्रकार मेरी कैद को और भारी बना देंगे।
18 लेकिन इस से क्या? बहाने से हो या सच्चाई से, चाहे जिस प्रकार हो, मसीह का प्रचार तो हो रहा है। मैं इसी से आनन्दित हूँ। और मैं आनन्द मनाता ही रहूँगा,
19 क्योंकि मैं जानता हूँ कि आपकी प्रार्थनाओं और ईसा मसीह के आत्मा की सहायता द्वारा इन सब बातों का परिणाम यह होगा कि मैं मुक्त हो जाऊँगा।
20 मेरी हार्दिक अभिलाषा और आशा यह है कि चाहे मैं जीवित रहूँ या मरूँ, मुझे किसी बात पर लज्जित नहीं होना पड़ेगा और मसीह मुझ में महिमान्वित होंगे।
21 मेरे लिए तो जीवन है-मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति।
22 किन्तु यदि मैं जीवित रहूँ, तो सफल परिश्रम कर सकता हूँ, इसलिए मैं नहीं समझ पाता कि क्या चुनूँ।
23 मैं दोनों ओर खिंचा हुआ हूँ। मैं तो चल देना और मसीह के साथ रहना चाहता हूँ। यह निश्चय ही सर्वोत्तम है;
24 किन्तु शरीर में मेरा विद्यमान रहना आप लोगों के लिए अधिक हितकर है।
25 मुझे पक्का विश्वास है कि मैं आपके साथ रह कर आपकी सहायता करूँगा, जिससे आपकी प्रगति हो और विश्वास में आपका आनन्द बढ़े।
26 इस प्रकार जब मैं फिर आपके यहाँ आऊँगा, तो आप मेरे कारण ईसा मसीह पर और भी गौरव कर सकेंगे।
27 आप लोग एक बात का ध्यान रखें- आपका आचरण मसीह के सुसमाचार के योग्य हो। इस तरह मैं चाहे आ कर आप से मिलूँ, चाहे दूर रह कर आपके विषय में सुनूँ, मुझे यही मालूम हो कि आप एकप्राण हो कर अटल बने हुए हैं, एक हृदय हो कर सुसमाचार में विश्वास के लिए प्रयत्नशील हैं
28 और अपने विरोधियों से तनिक भी नहीं डरते। आपकी यह दृढ़ता ईश्वर का वरदान है और यह विरोधियों के लिए विनाश का, किन्तु आपके लिए मुक्ति का संकेत है।
29 आप लोगों को न केवल मसीह में विश्वास करने का, बल्कि उनके कारण दुःख भोगने का भी वरदान मिला है।
30 अब आप भी उस संघर्ष में लगे हुए हैं, जो आपने मुझे करते देखा और जिस में मैं अब भी लगा हूँ, जैसा कि आप सुनते होंगे।