सूक्ति-ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31
अध्याय 30
1 मस्सावासी याके के पुत्र आगूर की सूक्तियाँ। उस मनुष्ष्य ने इतिएल, इतिएल और ऊकल से यह कहा:
2 मैं मनुष्यों में से सब से अधिक मूर्ख हूँ; मुझ में मनुष्य जैसी समझ नहीं।
3 मैंने प्रज्ञा प्राप्त नहीं की। मुझे सर्वोच्च प्रभु का ज्ञान नहीं।
4 कौन स्वर्ग जा कर फिर उतरा? किसने पवन को अपनी मुट्ठी में बन्द किया? किसने पानी को कपड़े में बाँध लिया? किसने पृथ्वी की सीमाओें को निर्धारित किया? उसका और उसके पुत्र का नाम क्या है? यदि तुम जानते हो, तो मुझे बताओ।
5 ईश्वर की प्रत्येक प्रतिज्ञा विश्वसनीय है। ईश्वर अपने शरणार्थियों की ढाल है।
6 उसके वचनों में अपनी और से कुछ मत जोड़ो, कहीं ऐसा न हो कि वह तुम को डाँटे और झूठा प्रमाणित करे।
7 मैं तुझ से दो वरदान माँगता हूँ, उन्हें मेरे जीवनकाल में ही प्रदान कर।
8 मुझ से कपट और झूठ को दूर कर दे। मुझे न तो ग़रीबी दे और न अमीरी- मुझे आवश्यक भोजन मात्र प्रदान कर।
9 कहीं ऐसा न हो कि मैं धनी बन कर तुझे अस्वीकार करते हुए कहूँ “प्रभु कौन है?” अथवा दरिद्र बन कर चोरी करने लगूँ और अपने ईश्वर का नाम कलंकित कर दूँ।
10 तुम मालिक से नौकर की चुग़ली मत खाओ। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम को शाप दे और तुम्हे भुगतना पडे़।
11 कुछ लोग अपने पिता को अभिशाप देते और अपनी माता का कल्याण नहीं चाहते।
12 कुछ लोग अपने को शुद्ध समझते, किन्तु उनका दूषण नहीं धुला है।
13 कुछ लोगों की आँखें घमण्ड से भरी हैं और दूसरों को तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखती हैं।
14 कुछ लोगों के दाँत तलवार जैसे और जबड़े छुरी-जैसे हैं; वे देश के दीनों को और जनता में से दरिद्रों को फाड़ कर खाते हैं।
15 जोंक की दो बेटियाँ हैं, वे “दे दो, दे दो” चिल्लाती हैं। तीन चीज़ें कभी तृप्त नहीं होतीं, चार कभी, “बस!” नहीं कहतीं:
16 अधोलोक, बाँझ का गर्भाशय, पानी की प्यासी भूमि और आग, जो कभी “बस!” नहीं कहती।
17 जो आँख पिता की हँसी उड़ाती और माता की आज्ञा का पालन नहीं करती, उसे घाटी के कौए फोड़ोंगे, उसे गरुड़ के बच्चे खायेंगे।
18 तीन बातें मेरी बुद्धि के परे हैं, चार समझ में नहीं आतीं:
19 आकाश में गरुड़ का मार्ग, चट्टान पर साँप का मार्ग, समुद्र पर जहाज़ का मार्ग और युवती के साथ पुरुष का व्यवहार।
20 व्यभिचारिणी का आचरण ऐसा ही है। वह खाती, मुँह पोंछती और कहती है- “मैंने कोई बुरा काम नहीं किया है”।
21 तीन बातों से पृथ्वी काँपती है, चार को वह सह नहीं सकती:
22 राजा बनने वाला दास, भरपेट भोजन करने वाला मूर्ख,
23 विवाह करने वाली कुत्सित स्त्री और अपनी मालकिन का स्थान लेने वाली नौकरानी।
24 पृथ्वी पर चार प्राणी बहुत छोटे, किन्तु बड़े समझदार हैं:
25 चींटियाँ निर्बल होती है, किन्तु फ़सल के समय अपना भोजन एकत्र करती है।
26 बिज्जू बलशाली नहीं होते, किन्तु चट्टानों में अपना घर बनाते हैं।
27 टिड्डियों का कोई राजा नहीं होता, किन्तु वे पंक्तिबद्ध हो कर चलती हैं।
28 छिपकली हाथ से उठायी जा सकती है, किन्तु वह राजाओें के महलों में पायी जाती है।
29 तीन प्राणियों की चाल मनोहर है और चार की ठवन आकर्षक:
30 सिंह, जानवरों में सब से शूरवीर, जो किसी को पीठ नहीं दिखाता;
31 इठलाता हुआ मुरगा, बकरा और अपनी सेना के आगे-आगे चलने वाला राजा।
32 यदि तुमने घमण्ड के कारण मूर्खतापूर्ण कार्य किया या बुरी योजना बनायी है, तो चुप रहो;
33 क्योंकि दूध मथने से मलाई बनती, नाक पर प्रहार करने से रक्त बहता और क्रोध करने से झगड़ा पैदा होता है।