सूक्ति-ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122232425262728293031

अध्याय 6

1 पुत्र! यदि तुमने अपने पड़ोसी की ज़मानत दी है, यदि तुमने किसी पराये व्यक्ति के लिए ज़िम्मेवारी ली है,

2 यदि तुम अपनी प्रतिज्ञा के जाल में फँसे हो, यदि तुम अपने ही शब्दों से बँध गये हो,

3 तो तुम मुक्त होने के लिए यह करो: पुत्र! तुम अपने पड़ोसी के हाथ पड़ गये हो, इसलिए तुम जा कर उस से अनुरोध करते रहो।

4 तुम अपनी आँखों में नींद नहीं आने दो, अपनी पलकों की झपकी न लेने दो,

5 तुम हरिण की तरह शिकारी के जाल से, पक्षी की तरह बहेलिये के फन्दे से अपने को छुड़ाओ।

6 आलसी! तुम चींटी के पास जाओ! उसके आचरण पर विचार करो और प्रज्ञ बनो।

7 उसका न तो कोई स्वामी है, न कोई निरीक्षक और न कोई शासक।

8 वह समय पर अपने रसद का प्रबन्ध करती और फ़सल के समय अपना भोजन संचित करती है।

9 आलसी! तुम कब तक पड़े रहोगे, तुम अपनी नींद से कब जागोगे?

10 थोड़ी देर तक सोना, थोड़ी देर झपकी लेना और हाथ-पर-हाथ रख कर थोड़ी देर आराम करना-

11 ऐसा होने पर ग़रीबी तुम पर डाकू की तरह टूटेगी, अभाव तुम पर बलशाली की तरह आक्रमण करेगा।

12 वह व्यक्ति निकम्मा और दुष्ट है, जो असत्य बोलता रहता है;

13 जो आँख मारता, पैर घसीट कर चलता और उँगलियों से इशारा करता है;

14 अपने हृदय में कपटपूर्ण योजनाएँ बनाता और लड़ाई लगाता है।

15 इस से विपत्ति उस पर अचानक टूट पड़ेगी, वह पलक मारते ही नष्ट हो जायेगा और उसका उपचार सम्भव नहीं होगा।

16 प्रभु छः बातों से बैर रखता और सात बातों से घृणा करता है:

17 घमण्ड-भरी आँखें, झूठ बोलने वाली जिह्वा, निर्दोष रक्त बहाने वाले हाथ,

18 कपटपूर्ण योजनाएँ बनाने वाला हृदय, बुराई की ओर बढ़ने वाले पैर,

19 असत्य बोलने वाला झूठा साक्षी और भाइयों में झगड़ा लगाने वाला व्यक्ति।

20 पुत्र! अपने पिता की आज्ञाओें का पालन करो, अपनी माता की सीख अस्वीकार न करो।

21 उन्हें अपने हृदय में सँजोये रखो, उन्हें अपने गले में बाँध लो।

22 वे तुम्हारे सभी मार्गों में तुम्हारा पथ- प्रदर्शन करेंगी, वे तुम्हारी शय्या के पास तुम्हारी रखवाली करेंगी और तुम्हारे जागने पर तुम से बातचीत करेंगी;

23 क्योंकि ये आज्ञाएँ दीपक हैं, यह शिक्षा ज्योति और अनुशासन की डाँट जीवन-मार्ग है,

24 जिससे तुम व्यभिचारिणी से और परस्त्री के प्रलोभन से सावधान रहो।

25 तुम अपने हृदय में उसके सौन्दर्य की अभिलाषा मत करो, तुम उसके कटाक्ष के शिकार मत बनो;

26 क्योंकि वेश्या तो रोटी के टुकड़े से ख़रीदी जा सकती है, किन्तु व्यभिचारिणी तुम्हारे जीवन का विनाश करती है।

27 क्या कोई अपने पल्ले में आग बाँधेगा और उसके कपड़े नहीं जलेंगे ?

28 क्या कोई जलते अंगारों पर चलेगा और उसके पैर नहीं झुलसेंगे?

29 यही हाल उसका है, जो अपने पड़ोसी की पत्नी के पास जाता है। जो उसका स्पर्श करता, वह बिना दण्ड के नहीं रहेगा।

30 लोग उस चोर का तिरस्कार नहीं करते, जो अपनी भूख मिटाने के लिए चोरी करता है।

31 फिर भी यदि वह पकड़ा जाये, तो उसे सात गुनी क्षतिपूर्ति करनी और अपने घर की सारी सम्पत्ति देनी पड़ती है।

32 परस्त्रीगमन करने वाला नासमझ है, क्योंकि वह ऐसा करने पर अपना ही सर्वनाश करता है।

33 वह पीटा जायेगा, वह बदनाम होगा और उसका कलंक कभी नहीं मिटेगा;

34 क्योंकि ईर्ष्या पति का क्रोध भड़काती है और वह प्रतिशोध लेते समय दया नहीं करेगा।

35 तुम कितना ही क्यों न देना चाहो, वह क्षतिपूर्ति स्वीकार नहीं करेगा।