स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 106

1 अल्लेलूया! प्रभु की स्तुति करो; क्योंकि वह भला है। उसका प्रेम अनन्त काल तक बना रहता है।

2 प्रभु के महान् कार्यों का वर्णन कौन कर सकता है? उसकी यथायोग्य स्तुति कौन कर सकता है?

3 धन्य हैं वे, जो न्याय का पालन करते और हर समय सदाचरण करते हैं!

4 प्रभु! जब तू अपनी प्रजा पर दयादृष्टि करेगा, तो मुझे भी याद कर। जब तू उसका उद्धार करेगा, तो मेरी भी सुधि ले,

5 जिससे मैं तेरे कृपापात्रों की सुख-शान्ति देखूँ; तेरी प्रजा के आनन्द से प्रफुल्लित होऊँ और उसकी महिमा का भागी बनूँ।

6 हमने अपने पूर्वजों की तरह पाप किया। हम भटक गये, हम अपराधी हैं।

7 हमारे पूर्वजों ने मिस्र में रहते समय तेरे अपूर्व कार्यों का अर्थ नहीं समझा। उन्होंने तेरे असंख्य वरदान भुला दिया और लाल सागर के पास विद्रोह किया।

8 अपने नाम के कारण और अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करने के लिए प्रभु ने उनका उद्धार किया।

9 उसने लाल सागर को डाँटा और वह सूख गया, उसने उन्हें गहरे सागर के उस पार पहुँचाया, मानो वह मरुभूमि हो।

10 उसने उन्हें बैरियों के हाथ से छुड़ाया, उसने शत्रु के हाथ से उनकी रक्षा की।

11 जलधारा ने उनके शत्रुओं को ढक लिया, उन में एक भी शेष नहीं रहा।

12 उस समय उन्हें उसके शब्दों पर विश्वास हुआ और उन्होंने उसका स्तुतिगान किया।

13 उन्होंने शीघ्र ही उसके कार्य भुला दिये और उसकी योजना पूरी होने की प्रतीक्षा नहीं की।

14 वे मरुभूमि में अपनी वासनाओं के शिकार बने, उन्होंने निर्जन प्रदेश में ईश्वर की परीक्षा ली।

15 वे जो माँगते थे, ईश्वर ने उन्हें दे दिया, किन्तु उन में उचाट भी उत्पन्न किया।

16 उन्होंने शिविर में मूसा से ईर्ष्या की और प्रभु को अर्पित हारून से भी।

17 पृथ्वी फट कर दातान को निगल गयी और उसने अबीराम के दल को समेट लिया।

18 उनके समुदाय में आग लगी, ज्वालाओं ने दुष्टों को भस्म कर दिया।

19 उन्होंने होरेब में एक बछड़ा गढ़ा और धातु की मूर्ति को दण्डवत् किया।

20 उन्होंने अपने महिमामय ईश्वर के बदले घास खाने वाले बैल की प्रतिमा की शरण ली।

21 उन्होंने अपने मुक्तिदाता ईश्वर को भुला दिया, जिसने मिस्र देश में महान् कार्य किये थे,

22 हाम देश में चमत्कार दिखाये थे और लाल समुद्र के पास आतंक फैलाया था।

23 वह उनका सर्वनाश करने की सोच रहा था, किन्तु उसके कृपापात्र मूसा बीच में आये और ईश्वर ने उन पर से अपना विनाशकारी क्रोध हटा लिया।

24 उन्होंने रमणीय देश का तिरस्कार किया; उन्हें प्रभु की प्रतिज्ञा पर विश्वास नहीं था।

25 वे अपने तम्बुओं में भुनभुनाते रहे और उन्होंने प्रभु की वाणी की अवज्ञा की।

26 प्रभु ने हाथ उठा कर शपथ खायी कि वह मरुभूमि में उनका विनाश करेगा,

27 उनके वंशजों को राष्ट्रों में तितर-बितर कर देगा और उन्हें अन्य देशों में निर्वासित करेगा।

28 उन्होंने पेओर के बाल-देवता का जूआ स्वीकार किया और निर्जीव देवताओं को चढ़ायी बलि खायी।

29 उन्होंने अपने आचरण द्वारा ईश्वर को चिढ़ाया और उन में महामारी फैल गयी।

30 तब पीनहास उठ कर मध्यस्थ बने और महामारी रुक गयी।

31 इसके कारण पीनहास पीढ़ी-दर-पीढ़ी, सदा के लिए, धार्मिक माने गये।

32 इस्राएलियों ने मरीबा के जलाशय के पास ईश्वर को चिढ़ाया और मूसा का अनिष्ट किया;

33 क्योंकि उन्होंने मूसा के मन में कटुता उत्पन्न की और उनके मुँह से अविवेकपूर्ण शब्द निकले।

34 उन्होंने उन राष्ट्रों का विनाश नहीं किया, जैसा कि प्रभु ने उन्हें आदेश दिया था।

35 वे उन से मेल-जोल रखने और उनकी धर्मरीतियाँ अपनाने लगे।

36 उन्होंने उनकी देवमूर्तियों की पूजा की; वही उनके लिए फन्दा बन गया।

37 उन्होंने अप-देवताओं के आदर में अपने पुत्र-पुत्रियों को बलि चढ़ाया।

38 उन्होंने निर्दोष रक्त बहाया अपने पुत्र-पुत्रियों का रक्त, जिसे उन्होंने कनान की देवमूर्तियों को चढ़ाया। देश रक्त की धाराओं से अपवित्र हो गया।

39 वे अपने आचरण से दूषित हो गये। उन्होंने प्रभु के साथ विश्वासघात किया।

40 प्रभु का कोप अपनी प्रजा पर भड़क उठा, वह अपनी विरासत से घृणा करने लगा।

41 उसने उन्हें राष्ट्रों के हाथ छोड़ दिया और उनके बैरियों ने उन पर शासन किया।

42 शत्रु ने उन पर अत्याचार किया, उसके हाथ ने उन्हें नीचा दिखाया।

43 प्रभु ने बारम्बार उनका उद्धार किया, किन्तु वे अपने कुकर्मों द्वारा उसके विरुद्ध विद्रोह करते रहे।

44 फिर भी उनकी दुहाई सुन कर वह उनकी दुर्दशा पर ध्यान देता रहा।

45 वह उनके लिए निर्धारित विधान का स्मरण करता और अपनी अपूर्व दयालुता के कारण द्रवित हो जाता था।

46 जो उन्हें बन्दी बना कर ले गये थे, उन में उसने अपनी प्रजा के प्रति दया उत्पन्न की।

47 प्रभु! हमारे ईश्वर! हमारा उद्धार कर। राष्ट्रों में से हमें एकत्र कर। तब हम तेरा पवित्र नाम धन्य कहेंगे और तेरी स्तुति करते हुए अपने को धन्य समझेंगे।

48 प्रभु, इस्राएल का ईश्वर, सदा-सर्वदा धन्य है। सब लोग यह कहें: आमेन!