स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 111

1 अल्लेलूया! धर्मियों की गोष्ठी में, लोगों की सभा में मैं सारे हृदय से प्रभु की स्तुति करूँगा।

2 प्रभु के कार्य महान हैं। भक्त जन उनका मनन करते हैं।

3 उसके कार्य प्रतापी और ऐश्वर्यमय हैं। उसकी न्यायप्रियता युग-युगों तक स्थिर है।

4 प्रभु के कार्य स्मरणीय हैं। प्रभु दयालु और प्रेममय है।

5 वह अपने भक्तों को तृप्त करता और अपने विधान का सदा स्मरण करता है।

6 उसने अपनी प्रजा को राष्ट्रों की भूमि दिला कर अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन किया।

7 उसके कार्य सच्चे और सुव्यवस्थित हैं। उसके सभी नियम अपरिवर्तनीय हैं।

8 वे युग-युगों तक बने रहेंगे। उनके मूल में न्याय और सत्य हैं।

9 उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया और अपना विधान सदा के लिए निश्चित किया। उसका नाम पवित्र और पूज्य है।

10 प्रज्ञा का मूल स्रोत प्रभु पर श्रद्धा है। जो उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, वे अपनी बुद्धिमानी का प्रमाण देते हैं। प्रभु की स्तुति अनन्त काल तक होती है।