स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 12(11)

इश्वर की सत्यनिष्ठा

(संगीत-निर्देशक के लिए। सप्तक में। एक स्तोत्र। दाऊद का।)

2 (1-2 प्रभु! रक्षा कर! एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्यों में सत्य का लोप हो गया है।

3 लोग एक दूसरे से झूठ बोलते और कपटपूर्ण हृदय से चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं।

4 प्रभु चाटुकारों और डींग मारने वालों का सर्वनाश करे, जो कहते हैं,

5 “हम अपनी वाणी के बल पर विजयी होंगे। हम जो चाहेंगे, वही कहेंगे। हमारा प्रभु कौन है?”

6 प्रभु कहता है, “मैं अब उठूँगा, क्योंकि असहाय सताये जाते हैं और दरिद्र आह भरते हैं। जो तिरस्कृत हैं, मैं उनका उद्धार करूँगा।”

7 प्रभु की वाणी परिशुद्ध है। वह चाँदी के सदृश है, जो सात बार घड़िया में गलायी गयी है।

8 प्रभु! तू ही हमें सुरक्षित रखेगा और इस पीढ़ी से हमारी रक्षा करता रहेगा।

9 दुष्ट जन चारों ओर मँडराते हैं और मनुष्यों में नीचता का बोलबाला है।