स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 127

1 यदि प्रभु ही घर नहीं बनाये, तो राजमिस्त्रियों का श्रम व्यर्थ है। यदि प्रभु ही नगर की रक्षा नहीं करे, तो पहरेदार व्यर्थ जागते हैं।

2 कठोर परिश्रम की रोटी खानेवालो! तुम व्यर्थ ही सबेरे जागते और देर से सोने जाते हो; वह अपने सोये हुए भक्त का भरण-पोषण करता है।

3 पुत्र प्रभु द्वारा दी हुई विरासत है, सन्तति प्रभु द्वारा प्रदत्त पारितोष़िक है।

4 तरुणाई के पुत्र योद्धा के हाथ में बाणों-जैसे हैं।

5 धन्य है वह मनुष्य, जिसने उन से अपना तरकश भर लिया है! जब उसे नगर के फाटकों पर शत्रुओं का सामना करना पड़ेगा, तो वह लज्जित नहीं होगा।