स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 14(13)
नास्तिक
(संगीत-निर्देशक के लिए। दाऊद का।)
1 मूर्ख अपने मन में कहते हैं: “ईश्वर है ही नहीं”। उनका आचरण भ्रष्ट और घृणास्पद है। उन में कोई भी भलाई नहीं करता।
2 ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान्हो , जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।
3 सब-के-सब भटक गये हैं, सब समान रूप से दुष्ट हैं। उन में कोई भी भलाई नहीं करता, नहीं, एक भी नहीं।
4 क्या वे कुकर्मी कुछ नहीं समझते? वे भोजन की तरह मेरी प्रजा का भक्षण करते हैं और ईश्वर का नाम नहीं लेते।
5 अब वे थरथर काँपने लगे हैं, क्योंकि ईश्वर धर्मियों का साथ देता है।
6 क्या तुम दरिद्र की योजनाओं को विफल करना चाहते हो, जब कि प्रभु उसका आश्रयदाता है?
7 कौन सियोन पर से इस्राएल का उद्धार करेगा? जब प्रभु अपनी प्रजा के निर्वासितों को लौटा लायेगा, तब याकूब उल्लसित होगा और इस्राएल आनन्द मनायेगा।