स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 2

1 राष्ट्रों में खलबली क्यों मची हुई है, देश-देश के लोग व्यर्थ की बातें क्यों करते हैं?

2 पृथ्वी के राजा विद्रोह करते हैं। वे प्रभु तथा उसके मसीह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं

3 और कहते हैं: हम उनकी बेड़ियाँ तोड़ डालें हम उनका जुआ उतार कर फेंक दें।

4 जो स्वर्ग में विराजमान है, वह हँसता है, प्रभु उन लोगों का उपहास करता है।

5 वह क्रुद्ध हो कर उन्हें डाँटता और यह कहते हुए उन्हें आतंकित करता है:

6 मैंने ही अपने पवित्र पर्वत सियोन पर अपने राजा को नियुक्त किया है।

7 मैं ईश्वर की राजाज्ञा घोषित करूँगा। प्रभु ने मुझ से कहा, “तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम को उत्पन्न किया है।

8 मुझ से माँगो और मैं तुम्हें सभी राष्ट्रों का अधिपति तथा समस्त पृथ्वी का स्वामी बना दूँगा।

9 तुम लोहे के दण्ड से उन पर शासन करोगे, तुम उन्हें मिट्टी के बरतनों की तरह चकना-चूर कर दोगे।”

10 राजाओ! अब भी समझो! पृथ्वी के शासको! शिक्षा ग्रहण करो, सावधान हो कर आनन्द मनाओ।

11 डरते-काँपते हुए प्रभु की सेवा करो। सावधान हो कर आनन्द मनाओ।

12 पुत्र की आज्ञाओं का पालन करो, ऐसा न हो कि वह क्रोध करे और तुम्हारा सर्वनाश हो जाये; क्योंकि उसका क्रोध सहज ही भड़कता है। धन्य हैं वे, जो उसकी शरण जाते हैं!