स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 25
1 प्रभु! मैं अपनी आत्मा को तेरी और अभिमुख करता हूँ।
2 मेरे ईश्वर! मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ, मुझे निराश न कर। मेरे शत्रु मुझ पर हावी न हो पायें।
3 जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, वे कभी निराश नहीं होते। निराश वे होते हैं, जो अकारण तुझे त्यागते हैं।
4 प्रभु! मुझे अपने मार्ग का ज्ञान दे, मुझे अपने पथ की शिक्षा प्रदान कर।
5 मुझे अपने सत्य के मार्ग पर ले चल, मुझे शिक्षा देने की कृपा कर; क्योंकि तू ही वह ईश्वर है, जो मुक्ति प्रदान करता है। मैं दिन भर तेरी प्रतीक्षा करता हूँ।
6 प्रभु! अपनी करुणा और सत्यप्रतिज्ञता याद कर, जो अनन्त काल से बनी हुई है
7 तू मेरे अपराधों और जवानी के पापों को याद न कर। प्रभु! अपनी भलाई और सत्यप्रतिज्ञता के अनुरूप मेरी सुधि ले।
8 प्रभु भला और सच्चा है, इसलिए वह पापियों को मार्ग दिखाता है।
9 वह दीनों को सन्मार्ग पर ले चलता और पददलितों को अपने मार्ग की शिक्षा देता है।
10 जो प्रभु के विधान और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, उनके लिए उसके सब मार्ग निष्ठा और सत्य के मार्ग हैं।
11 प्रभु! अपने नाम के अनुरूप मेरा अपराध क्षमा कर, हालाँकि वह भारी है।
12 यदि कोई प्रभु पर श्रद्धा रखता है, तो वह उसे उचित मार्ग दिखाता है।
13 उसका जीवन सुख-शान्ति में बीतेगा और उसका वंश पृथ्वी का अधिकारी होगा।
14 प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले उसके कृपापात्र हैं। वह उन्हें अपने विधान का ज्ञान कराता है।
15 मेरी आँखें प्रभु पर लगी हुई हैं! क्योंकि वह मेरे पैरों को जाल से छुड़ाता है।
16 मुझ पर दयादृष्टि कर, मुझ पर दया कर; क्योंकि मैं अकेला और दुःखी हूँ
17 मेरे शोकसन्तप्त हृदय को सान्त्वना दे और मुझे यातनाओं से मुक्त कर।
18 मेरी दुर्गति और कष्ट पर ध्यान दे, मेरे सब पाप क्षमा कर।
19 यह देख कि मेरे शत्रु कितने अधिक हैं और वे मुझ से बैर और अत्याचार करते हैं।
20 मेरे जीवन की रक्षा कर, मेरा उद्धार कर। मैं तेरी शरण आया हूँ, मुझे निराश न कर।
21 मेरी सच्चाई और धर्मनिष्ठा मेरी रक्षा करें, क्योंकि मुझे तेरा भरोसा है।
22 ईश्वर! इस्राएल को उसकी सब विपत्तियों से मुक्त कर।