स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 31

2 (1-2) प्रभु! मैं तेरी शरण आया हूँ। मुझे कभी निराश न होने दे। अपने न्याय के अनुरूप मेरा उद्धार कर।

3 मेरी सुन, मुझे शीघ्र छुड़ाने की कृपा कर। तू मेरे लिए आश्रय की चट्टान और रक्षा का सुदृढ़ गढ़ बन;

4 क्योंकि तू ही मेरी चट्टान है और मेरा गढ़। अपने नाम के कारण तू मुझे ले चल और मेरा पथप्रदर्शन कर।

5 जो जाल मेरे लिए बिछाया गया है, तू मुझे उस से छुड़ा; क्योंकि तू ही मेरा आश्रय है।

6 मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंपता हूँ। प्रभु! तूने मेरा उद्धार किया। तू ही सत्यप्रतिज्ञ ईश्वर है।

7 जो निस्सार मूर्तियों की पूजा करते हैं, मैं उन से घृणा करता हूँ; क्योंकि मुझे प्रभु का भरोसा है।

8 मैं तेरी सत्यप्रतिज्ञा के कारण उल्लास के साथ आनन्द मनाऊँगा; क्योंकि तूने मेरी दुर्गति देखी और मेरी आत्मा की पीड़ा पर ध्यान दिया है।

9 तूने मुझे शत्रु के हाथ नहीं छोड़ा; तूने मुझे छुड़ाया और स्वच्छन्द विचरने दिया।

10 प्रभु! मुझ पर दया कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ। मेरी आँखें शोक से धुँधली हो गयी हैं, मेरी आत्मा और मेरा शरीर सन्तप्त हैं।

11 मेरा जीवन दुःख में बीत रहा है और मेरे वर्ष आहें भरने में। मेरी दुर्गति के कारण मेरी शक्ति क्षीण हो गयी है और मेरी हड्डियाँ गल रही हैं।

12 मेरे सब विरोधी मेरी निन्दा करते हैं, मेरे पड़ोसी भी मेरा उपहास करते हैं। मेरे परिचित मुझ से भय खाते हैं। जो मुझे रास्ते में देखते हैं, वे मुझ से दूर भागते हैं।

13 मैं मरे हुए की तरह भुला दिया गया हूँ, टूटे घड़े-जैसा बन गया हूँ।

14 मैं बहुतों की निन्दा सुनता रहता हूँ, चारों और आतंक से घिरा हूँ। वे मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रच कर मुझे मार डालना चाहते हैं।

15 प्रभु! मुझे तेरा ही भरोसा है। मैं कहता हूँ, तू ही मेरा ईश्वर है।

16 तेरे ही हाथों मेरा भाग्य है, शत्रुओं और अत्याचारियों से मेरी रक्षा कर।

17 अपने सेवक पर दयादृष्टि कर। तू दयासागर है, मेरा उद्धार कर।

18 प्रभु! मैं तुझे पुकारता हूँ; मुझे निराश न होने दे। मेरे शत्रु निराश हों और अधोलोक में मौन हो जायें।

19 वे मिथ्यावादी होंठ बन्द हों, जो घमण्ड, धृष्टता और तिरस्कार से धर्मी के विरुद्ध बोलते हैं।

20 प्रभु! तेरी भलाई कितनी अपार है! तू अपने भक्तों के लिए कितना दयालु है! जो तेरी शरण आते हैं, तू उन्हें सब के सामने आश्रय देता है।

21 तू उन्हें अपने साथ रख कर मनुष्यों के षड्यन्त्रों से उनकी रक्षा करता है। तू उन्हें अपने तम्बू में छिपा कर लोगों की निन्दा से बचाता है।

22 धन्य है प्रभु! उसने संकट के समय मुझ पर अपूर्व रीति से दया की है।

23 मैंने अपनी घबराहट में कहा था, “तूने मुझे अपने सामने से हटा दिया है”, किन्तु मेरे दुहाई देने पर तूने मेरी पुकार सुनी है।

24 प्रभु के सब भक्तों! प्रभु को प्यार करो। वह अपने विश्वासियों की रक्षा करता है, किन्तु वह घमण्डियों को पूरा-पूरा दण्ड देता है।

25 तुम सब, जो प्रभु पर भरोसा रखते हो, ढारस रखो और दृढ़ रहो।