स्तोत्र ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • 67 • 68 • 69 • 70 • 71 • 72 • 73 • 74 • 75 • 76 • 77 • 78 • 79 • 80 • 81 • 82 • 83 • 84 • 85 • 86 • 87 • 88 • 89 • 90 • 91 • 92 • 93 • 94 • 95 • 96 • 97 • 98 • 99 • 100 • 101 • 102 • 103 • 104 • 105 • 106 • 107 • 108 • 109 • 110 • 111 • 112 • 113 • 114 • 115 • 116 • 117 • 118 • 119 • 120 • 121 • 122 • 123 • 124 • 125 • 126 • 127 • 128 • 129 • 130 • 131 • 132 • 133 • 134 • 135 • 136 • 137 • 138 • 139 • 140 • 141 • 142 • 143 • 144 • 145 • 146 • 147 • 148 • 149 • 150 • पवित्र बाईबल
स्तोत्र 41
2 (1-2) धन्य है वह, जो दरिद्र की सुधि लेता है! विपत्ति के दिन प्रभु उसका उद्धार करता है।
3 प्रभु पृथ्वी पर उसे सुरक्षित रखता और सुख-शान्ति प्रदान करता है। वह उसे उसके शत्रुओं के हाथों पड़ने नहीं देता।
4 प्रभु उसे रोग-शय्या पर सान्त्वना देता और उसका बिस्तर बदलता है।
5 मैंने कहा, “प्रभु! मुझ पर दया कर, मुझे चंगा कर, क्योंकि मैंने तेरे विरुद्ध पाप किया है।”
6 मेरे शत्रु यह कहते हुए मेरा अहित चाहते हैं। “वह कब मरेगा और उसका नाम नहीं रहेगा?”
7 यदि कोई मुझ से मिलने आता है, तो वह झूठ बोलता है। वह मन में मेरी बुराई की सामग्री भरता और बाहर आते ही मेरी निन्दा करता है।
8 मेरे सब बैरी मिल कर मेरे विरुद्ध फुसफुसाते और मेरी दुर्दशा के विषय में यह कहते हैं:
9 “वह एक अशुभ रोग से ग्रस्त है। उसके लग जाने के बाद कोई रोग-शय्या से नहीं उठता।”
10 जिस पर मुझे भरोसा था, जिसने मेरी रोटी खायी, उस अभिन्न मित्र ने भी मुझ पर लात चलायी है।
11 परन्तु तू, प्रभु! मुझ पर दया कर; मुझे चंगा कर और मैं उन से बदला चुकाऊँगा।
12 मेरा शत्रु मुझ पर विजयी नहीं हुआ, इस से मैं जानता हूँ कि तू मुझ पर प्रसन्न है।
13 मेरी निर्दोषता के कारण तूने मुझे सँभाला और सदा के लिए मुझे अपने सान्निध्य में रखा है।
14 प्रभु, इस्राएल काईश्वर, सदा-सर्वदा धन्य है। आमेन, आमेन।