स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 42
2 (1-2) ईश्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसे मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है,
3 मेरी आत्मा ईश्वर की, जीवन्त ईश्वर की प्यासी है। मैं कब जा कर ईश्वर के दर्शन करूँगा?
4 दिन-रात मेरे आँसू ही मेरा भोजन है। लोग दिन भर यह कहते हुए मुझे छेड़ते हैं: “कहाँ है तुम्हारा ईश्वर?”
5 मैं भावविभोर हो कर वह समय याद करता हूँ, जब उत्सव मनाती हुई भीड़ में मैं अन्य तीर्थयात्रियों के साथ आनन्द और उल्लास के गीत गाते हुए ईश्वर के मन्दिर की ओर बढ़ रहा था।
6 मेरी आत्मा! क्यों उदास हो? क्यों आह भरती हो? ईश्वर पर भरोसा रखो। मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। वह मेरा मुक्तिदाता और मेरा ईश्वर है।
7 मेरी आत्मा मेरे अन्तरतम में उदास है; इसलिए मैं यर्दन और हेरमोन प्रदेश से, मिसार के पर्वत पर से तुझे याद करता हूँ।
8 तेरे जलप्रपातों का घोर निनाद प्रतिध्वनित हो कर गरजता है। तेरी समस्त लहरें और तरंगें मुझ पर गिर कर बह गयी हैं।
9 दिन में मैं प्रभु की कृपा के लिए तरसता हूँ, रात को मैं अपने जीवन्त ईश्वर की स्तुति गाता हूँ।
10 मैं ईश्वर से, अपनी चट्टान से, कहता हूँ, “तू मुझे क्यों भूल जाता है? शत्रु के अत्याचार से दुःखी हो कर मुझे क्यों भटकना पड़ता है?”
11 मेरी हड्डियाँ रौंदी जा रही हैं। मेरे विरोधी यह कहते हुए दिन भर मेरा अपमान करते हैं “कहाँ है तुम्हारा ईश्वर?
12 मेरी आत्मा! क्यों उदास हो? क्यों आह भरती हो? ईश्वर पर भरोसा रखो। मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। वह मेरा मुक्तिदाता और मेरा ईश्वर है।