स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 45
2 (1-2) मेरे हृदय में मधुर भाव उमड़ रहे हैं। मैं राजा के आदर में गीत सुनाऊँगा; मेरी जिह्वा कुशल कवि की लेखनी की तरह हो।
3 आप पुरुषों में सर्वसुन्दर हैं। आपके अधरों में मधुरिमा टपकती है! यह आपके लिए ईश्वर का चिरस्थायी आशीर्वाद है।
4 शूरवीर! आप कमर में कृपाण बाँधें, ऐश्वर्य और प्रताप धारण करें।
5 सत्य की रक्षा और न्याय के समर्थन के लिए, आप धनुष चढ़ा कर अश्व पर प्रस्थान करें। आपका दाहिना हाथ चमत्कार दिखाये।
6 आपके बाण सुतीक्ष्ण हैं, वे राजा के शत्रुओं का हृदय छेदते हैं। राष्ट्र आपके अधीन हो जायेंगे।
7 आपका सिंहासन सदा-सर्वदा बना रहेगा। आपका राजदण्ड न्याय का अधिकार दण्ड है।
8 आप न्याय से प्रेम और अन्याय से घृणा करते हैं; इसलिए ईश्वर, आपके ईश्वर ने आपके साथियों की अपेक्षा आनन्द के तेल से आपका अभिषेक किया है।
9 आपके वस्त्र गन्धरस, अगरु और तेजपत्र से सगुन्धित हैं। हाथीदाँत के महलों से आने वाला संगीत आप को आनन्दित करता है।
10 राजकुमारियाँ आपकी कृपापात्रों के साथ खड़ी हैं। ओफ़िर के स्वर्ण से विभूषित महारानी आपके दाहिने विराजमान हैं।
11 पुत्री! इधर देखो और कान लगा कर सुनो। तुम अपने लोगों को और अपने पिता का घर भूल जाओ,
12 जिससे राजा तुम्हारे सौन्दर्य की अभिलाषा करें। वह तुम्हारे स्वामी हैं, उन्हें दण्डवत् करो।
13 तीरुस की पुत्री! प्रजा के धन्य-मान्य लोग उपहार ला कर तुम्हारे कृपापात्र बनना चाहेंगे।
14 अन्तःपुर में राजकुमारी का श्रृंगार अपूर्व है। उसके वस्त्र स्वर्ण और मोतियों से विभूषित हैं।
15 अलंकृत परिधान पहने वह राजा के पास पहुँचायी जाती है। उसकी सखियाँ उसके पीछे-पीछे आपके पास ले जायी जाती हैं।
16 वे आनन्द के गीत गाते हुए आ रही हैं और उल्लास के साथ राजमहल में प्रवेश करती हैं।
17 आपके पुत्र आपके पूर्वजों की उत्तराधिकारी होंगे। आप उन्हें समस्त पृथ्वी पर शासक के रूप में नियुक्त करेंगे।
18 मैं भावी पीढ़ियों में आपके नाम की स्मृति जीवित रखूँगा, जिससे राष्ट्र सदा-सर्वदा आपकी स्तुति करें।