स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 57

2 (1-2) मुझ पर दया कर। ईश्वर! मुझ पर दया कर। मैं तेरी शरण आया हूँ। जब तक संकट न टले, मैं तेरे पंखों की छाया में रहूँगा।

3 मैं सर्वोच्च ईश्वर को पुकारता हूँ, ईश्वर को, जो मेरा हितकारी है।

4 वह स्वर्ग से मेरी सहायता और मेरी रक्षा करे। मेरे अत्याचारी ने ईश-निन्दा की है। प्रभु अपना प्रेम और अपनी सत्यप्रतिज्ञता प्रदर्शित करे।

5 मैं सिंहों के बीच पड़ा हुआ हूँ, आग उगलने वाले प्राणियों के बीच रहता हूँ। उनके दाँत भाले और बाण हैं और उनकी जीभ पैनी तलवार।

6 ईश्वर! आकाश के ऊपर अपने को प्रदर्शित कर। समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो।

7 मनुष्यों ने मेरे पैरों के नीचे जाल बिछाया और मुझे नीचा दिखाया है। उन्होंने मेरे लिए चोरगढ़ा खोदा है, किन्तु उस में वे स्वयं गिर गये हैं।

8 ईश्वर! मेरा हृदय प्रस्तुत है; प्रस्तुत है मेरा हृदय। मैं गाते-बजाते हुए भजन सुनाऊँगा।

9 मेरी आत्मा! जाग। सारंगी और वीणा! जागो। मैं प्रभात को जगाऊँगा।

10 प्रभु! मैं राष्ट्रों के बीच तुझे धन्य कहूँगा। मैं देश-विदेश में तेरा स्तुतिगान करूँगा;

11 क्योंकि आकाश के सदृश ऊँची है तेरी सत्यप्रतिज्ञता; तारामण्डल के सदृश ऊँचा है तेरा सत्य।

12 ईश्वर! आकाश के ऊपर अपने को प्रदर्शित कर। समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो।