स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 57
2 (1-2) मुझ पर दया कर। ईश्वर! मुझ पर दया कर। मैं तेरी शरण आया हूँ। जब तक संकट न टले, मैं तेरे पंखों की छाया में रहूँगा।
3 मैं सर्वोच्च ईश्वर को पुकारता हूँ, ईश्वर को, जो मेरा हितकारी है।
4 वह स्वर्ग से मेरी सहायता और मेरी रक्षा करे। मेरे अत्याचारी ने ईश-निन्दा की है। प्रभु अपना प्रेम और अपनी सत्यप्रतिज्ञता प्रदर्शित करे।
5 मैं सिंहों के बीच पड़ा हुआ हूँ, आग उगलने वाले प्राणियों के बीच रहता हूँ। उनके दाँत भाले और बाण हैं और उनकी जीभ पैनी तलवार।
6 ईश्वर! आकाश के ऊपर अपने को प्रदर्शित कर। समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो।
7 मनुष्यों ने मेरे पैरों के नीचे जाल बिछाया और मुझे नीचा दिखाया है। उन्होंने मेरे लिए चोरगढ़ा खोदा है, किन्तु उस में वे स्वयं गिर गये हैं।
8 ईश्वर! मेरा हृदय प्रस्तुत है; प्रस्तुत है मेरा हृदय। मैं गाते-बजाते हुए भजन सुनाऊँगा।
9 मेरी आत्मा! जाग। सारंगी और वीणा! जागो। मैं प्रभात को जगाऊँगा।
10 प्रभु! मैं राष्ट्रों के बीच तुझे धन्य कहूँगा। मैं देश-विदेश में तेरा स्तुतिगान करूँगा;
11 क्योंकि आकाश के सदृश ऊँची है तेरी सत्यप्रतिज्ञता; तारामण्डल के सदृश ऊँचा है तेरा सत्य।
12 ईश्वर! आकाश के ऊपर अपने को प्रदर्शित कर। समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो।