स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 63

2 (1-2) ईश्वर! तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।

3 मैंने तेरे मन्दिर में तेरे दर्शन किये, मैंने तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा देखी है।

4 तेरी सत्यप्रतिज्ञता प्राणों से भी अधिक प्यारी है। मेरा कण्ठ तेरी स्तुति करता था।

5 मैं जीवन भर तुझे धन्य कहूँगा और तुझ से करबद्ध प्रार्थना करता रहूँगा।

6 मेरी आत्मा मानो उत्तम व्यंजनों से तृप्त होगी; मैं उल्लसित हो कर तेरी स्तुति करूँगा।

7 मैं अपनी शय्या पर भी तुझे याद करता हूँ; मैं रात भर तेरा मनन करता हूँ।

8 तू सदा मेरा सहारा रहा है; मैं तेरे पंखों की छाया में सुखी हूँ।

9 मेरी आत्मा तुझ में आसक्त रहती है; तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता रहता है।

10 जो मेरे प्राणों के गाहक हैं, उनका विनाश हो; वे अधोलोक जायें।

11 वे तलवार के घाट उतारे जाये; वे गीदड़ों का आहार बनें।

12 राजा प्रभु के कारण आनन्दित होंगे। जो ईश्वर की शपथ खाता है, वह अपने को धन्य समझेगा, जब कि मिथ्यावादियों का मुख बन्द रहेगा।