स्तोत्र ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • 67 • 68 • 69 • 70 • 71 • 72 • 73 • 74 • 75 • 76 • 77 • 78 • 79 • 80 • 81 • 82 • 83 • 84 • 85 • 86 • 87 • 88 • 89 • 90 • 91 • 92 • 93 • 94 • 95 • 96 • 97 • 98 • 99 • 100 • 101 • 102 • 103 • 104 • 105 • 106 • 107 • 108 • 109 • 110 • 111 • 112 • 113 • 114 • 115 • 116 • 117 • 118 • 119 • 120 • 121 • 122 • 123 • 124 • 125 • 126 • 127 • 128 • 129 • 130 • 131 • 132 • 133 • 134 • 135 • 136 • 137 • 138 • 139 • 140 • 141 • 142 • 143 • 144 • 145 • 146 • 147 • 148 • 149 • 150 • पवित्र बाईबल
स्तोत्र 64
2 (1-2) ईश्वर! संकट में मेरी पुकार सुन। शत्रु के आतंक से मेरे प्राणों की रक्षा कर।
3 दुष्टों के षड्यन्त्र से, कुकर्मियों के अत्याचार से मेरी रक्षा कर।
4 उन्होंने अपनी जिह्वा को तलवार की तरह तेज़ किया और अपने विषैले शब्दों का निशाना बाण की तरह बाँधा है।
5 वे छिप कर धर्मी मनुष्य को मारते हैं। वे अचानक मारते हैं और किसी से नहीं डरते।
6 वे बुराई करने के लिए एक दूसरे को प्रोत्साहन देते हैं। वे जाल छिपाने के लिए आपस में परामर्श करते और कहते हैं: “हमें कौन देखेगा?”
7 वे कुकर्मों की योजना बनाते हैं और अपना कुचक्र छिपाये रखते हैं। मनुष्य का हृदय अपने अन्तरतम में अथाह है।
8 किन्तु ईश्वर ने उन पर बाण छोड़ा है, वे अचानक घायल हो गये हैं।
9 उनकी जिह्वा ने उनका विनाश किया है। उन्हें देख कर सब अपना सिर हिलाते हैं।
10 और भयभीत हो जाते हैं। वे ईश्वर के इस कार्य की घोषणा करते और इस से शिक्षा ग्रहण करते हैं।
11 धर्मी प्रभु में आनन्द मनाये, वह उसकी शरण जाये। इस से सब निष्कपट लोग अपने को धन्य मानेंगे।