स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920212223242526272829303132333435363738394041424344454647484950515253 54555657585960616263646566676869707172737475767778798081828384858687888990919293949596979899100101102103104105106107108109 110111112113114115116117118119120121122123124125126127128129130131132133134135136137138139140141142143144145146147148149150पवित्र बाईबल

स्तोत्र 69

2 (1-2) ईश्वर! मेरी रक्षा कर; जलप्रवाह मेरे गले तक आ रहा है।

3 मैं दलदल के कीच में धँसता जा रहा हूँ; मेरे पैर नहीं टिक पाते। मैं गहरे जल में पड़ गया हूँ; लहरें मुझे डुबा कर ले जा रही हैं।

4 मैं पुकारते-पुकारते थक गया हूँ; मेरा गला सूख गया है। अपने ईश्वर की राह देखते-देखते मेरी आँखें धुँधला रही हैं।

5 जो अकारण मुझ से बैर करते हैं, उनकी संख्या मेरे सिर के बालों से भी अधिक है। जो मुझ पर झूठा अभियोग लगाते हैं, वे मुझ से शक्तिशाली हैं। जो चीज़ मैंने नहीं चुरायी, क्या मैं उसे लौटा सकता हूँ?

6 ईश्वर! तू मेरी मूर्खता जानता है; मेरे अपराध तुझ से नहीं छिपे हैं।

7 विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर! जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, वे मेरे कारण अपमानित न हों। इस्राएल के प्रभु-ईश्वर! जो तुझ पर भरोसा रखते हैं वे मेरे कारण अपमानति न हों।

8 तेरे ही कारण लोग मेरा अपमान करते हैं और मेरा सिर लज्जा से झुक जाता है।

9 तेरे ही कारण मेरे भाई मुझे पराया समझते हैं और मैं अपनी माता के पुत्रों में परेदशी जैसा बन गया हूँ;

10 क्योंकि तेरे घर का उत्साह मुझे खा जाता है। तेरी निन्दा करने वाले मेरी निन्दा करते हैं।

11 मैंने उपवास द्वारा अपना शरीर तपाया, इस से लोगों ने मेरी निन्दा की।

12 मैंने टाट ओढ़ा और लोगों ने मुझ पर ताना मारा।

13 नगर के फाटक पर बैठनेवाले मेरी चरचा करते हैं और मदिरा पीने वाले मेरे विषय में गीत गाते हैं।

14 प्रभु! मैं तुझ से प्रार्थना करता हूँ; अब दया करने का समय आ गया है। ईश्वर! तेरी सत्यप्रतिज्ञता अपूर्व है; मुझे उत्तर दे, क्योंकि तू ही उद्धारक है।

15 मुझे दलदल में धँसने से बचा; बैरियों से, गहरे जल से मेरा उद्धार कर।

16 जलधारा मुझे डुबा कर न ले जाये, अथाह गर्त्तं मुझे निगलने न पायें, क़ब्र मुझ पर अपना मुँह बन्द न करे।

17 प्रभु! तू सत्यप्रतिज्ञ है, मुझे उत्तर दे; तू दयासागर है, मुझ पर दयादृष्टि कर।

18 अपने सेवक से अपना मुख और न छिपा; मैं संकट में हूँ, मुझे शीघ्र उत्तर दे।

19 मेरे पास आ और मेरी रक्षा कर; शत्रुओं से मेरा उद्धार कर।

20 तू जानता है कि वे किस तरह मुझे निन्दित, अपमानित और लज्जित करते हैं। मेरे सब विरोधी तेरे सामने हैं।

21 मेरा हृदय अपमान के कारण टूट गया है; मैं अत्यन्त दुर्बल हो गया हूँ। मैं व्यर्थ ही सहानुभूति की आशा करता रहा; मैं दिलासा चाहता था, किन्तु वह नहीं मिला।

22 उन्होंने मेरे भोजने में विष मिलाया और प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिला दिया।

23 उनका भोजन उनके लिए फन्दा औैर उनके मित्रों के लिए जाल बन जाये।

24 उनकी आँखें धुँधली पड़ जायें, जिससे वे न देख सकें। तू उनकी कमर झुकाये रख।

25 तेरा क्रोध उन पर भड़क उठे; तेरे कोप की ज्वाला उन्हें ग्रस्त कर ले।

26 उनका शिविर उजड़ जाये; उनके तम्बुओं में कोई निवास न करे;

27 क्योंकि जिसे तूने मारा था, उन्होंने उस पर अत्याचार किया; जिसे तूने घायल किया था, उन्होंने उसे और दुःख दिया।

28 उन्हें अपने पापों के लिए दोष-पर-दोष लगा, जिससे वे तुझ से पापमुक्ति न पा सकें।

29 जीवन-ग्रन्थ से उसके नाम मिटा दिये जायें; उनके नाम धर्मियों के साथ न लिखे जायें।

30 ईश्वर! मैं अभागा और दुःखी हूँ; तेरी सहायता मेरा उद्धार करे।

31 मैं गीत गाते हुए ईश्वर के नाम को धन्य कहूँगा, मैं धन्यवाद देते हुए उसका गुणगान करूँगा।

32 यह प्रभु को बैल की बलि से अधिक, सींग और खुर वाले साँड़ की बलि से अधिक प्रिय है।

33 दीन-हीन यह देख कर आनन्दित हो उठते हैं। तुम, जो ईश्वर की खोज में लगे रहते हो, तुम्हारे हृदय में नवजीवन का संचार हो;

34 क्योंकि प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है, वह अपनी पराधीन प्रजा का परित्याग नहीं करता।

35 आकाश और पृथ्वी, समुद्र और जलचारी जन्तुओ! प्रभु की स्तुति करो;

36 क्योंकि ईश्वर सियोन का उद्धार और यूदा के नगरों का पुनर्निर्माण करेगा। वे देश में बस कर उसे अपने अधिकर में करेंगे।

37 उसके सेवकों का वंश उसका उत्तराधिकारी होगा और उसके नाम के भक्त वहाँ निवास करेंगे।