स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 88
2 (1-2) प्रभु! मेरे मुक्तिदाता ईश्वर! मैं दिन-रात तुझे पुकारता हूँ।
3 मेरी प्रार्थना तेरे पास पहुँचे। मेरी दुहाई पर ध्यान देने की कृपा कर।
4 मैं कष्टों से घिरा हुआ हूँ मैं अधोलोक के द्वार पर पहुँचा हूँ।
5 लोग मेरी गिनती मरने वालों में करते हैं; मेरी सारी शक्ति शेष हो गयी है।
6 मैं मृतकों में एक-जैसा हो गया हूँ, उन लोगों के सदृश, जो क़ब्र में पड़े हुए हैं, जिन्हें तू याद नहीं करता, जिनकी तू देखरेख नहीं करता।
7 तूने मुझे गहरे गर्त में, अन्धकारमय गहराइयों में डाल दिया है।
8 तेरे क्रोध का भार मुझे दबाता है, उसकी लहरें मुझे डुबा ले जाती हैं।
9 तूने मेरे मित्रों को मुझ से दूर कर दिया और मुझे उनकी दृष्टि में घृणित बना दिया। मैं बन्दी हूँ और भाग नहीं सकता।
10 मेरी आँखें दुख के कारण धुँधली पड़ गयी हैं। प्रभु! मैं दिन भर तुझे पुकारता हूँ। मैं तेरे आगे हाथ पसारे रहता हूँ।
11 क्या तू मृतकों के लिए चमत्कार दिखायेगा? क्या मृतक उठ कर तेरी स्तुति करेंगे?
12 क्या क़ब्र में तेरे प्रेम की चरचा होती है? अधोलोक में तेरी सत्यप्रतिज्ञता का बखान होता है?
13 क्या मृत्यु की छाया में लोग तेरे चमत्कार, विस्मृति के देश में तेरी न्यायप्रियता जानते हैं?
14 प्रभु! मैं तुझे पुकारता हूँ। प्रातःकाल मेरी प्रार्थना तेरे पास पहुँचती है।
15 प्रभु! तू मेरा त्याग क्यों करता है? तू मुझ से अपना मुख क्यों छिपाता है?
16 मैं अभागा हूँ, बचपन से प्राणपीड़ा सहता हूँ। तुझ से आतंकित हो कर निष्क्रिय हूँ।
17 मैं तेरे प्रकोप के व्याघात सहता रहा; तेरी विभिषिकाओं ने मेरा विनाश किया है।
18 मैं जीवनभर उन से जल की बाढ़ की तरह घिरा रहा; उन्होंने मुझे चारों ओर से घेर लिया है।
19 तूने मेरे साथियों और मित्रों को मुझ से दूर किया है। अन्धकार ही मेरा एकमात्र आत्मीय है।