स्तोत्र ग्रन्थ
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स्तोत्र 89
2 (1-2) मैं प्रभु के उपकारों का गीत गाता रहूँगा। मैं पीढ़ी-दर-पीढ़ी तेरी सत्यप्रतिज्ञता घोषित करता रहूँगा।
3 तेरी कृपा सदा बनी रहेगी। तेरी प्रतिज्ञा आकाश की तरह चिरस्थायी है।
4 तूने कहा : “मैं अपने कृपापात्र दाऊद से प्रतिज्ञा कर चुका हूँ। मैंने शपथ खा कर अपने सेवक दाऊद से कहाः
5 ’मैं तुम्हारा वंश सदा के लिए स्थापित करूँगा। तुम्हारा सिंहासन युग-युगों तक सुदृढ़ बनाये रखूँगा’।”
6 प्रभु! आकाश तेरे अपूर्व कार्य घोषित करता है। स्वर्गिकों की सभा तेरी सत्यप्रतिज्ञता का बखान करती है।
7 आकाश में ऐसा कौन, जो प्रभु के समान हो? स्वर्गदूतों में प्रभु के सदृश कौन?
8 ईश्वर स्वर्गिकों की सभा में महाप्रतापी है, अपने साथ रहने वालों में सर्वाधिक श्रद्धेय है!
9 विश्मण्डल के प्रभु-ईश्वर! तेरे समान कौन? प्रभु! तू शक्तिशाली और सत्यप्रतिज्ञ है।
10 तू महासागर का घमण्ड चूर करता और उसकी उद्यण्ड लहरों को शान्त करता है।
11 तूने रहब पर घातक प्रहार किया और अपने बाहुबल से अपने शत्रुओं को तितर-बितर कर दिया।
12 आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; तूने संसार और उसके वैभव की स्थापना की।
13 तूने उत्तर और दक्षिण की सृष्टि की। ताबोर और हेरमोन तेरे नाम का जयकार करते हैं।
14 तेरी भुजा शक्तिशाली है, तेरा हाथ सुदृढ़, तेरा दाहिना हाथ प्रतापी है।
15 तेरा सिंहासन सत्य और न्याय पर आधारित है। प्रेम और सत्यप्रतिज्ञता तेरे आगे-आगे चलती है!
16 प्रभु! धन्य है वह प्रजा, जो तेरा जयकार करती है और तेरे मुखमण्डल की ज्योति में चलती हैं!
17 वह दिन भर तेरे नाम पर आनन्द मनाती और तेरे न्याय पर गौरव करती है;
18 क्योंकि तू ही उसके बल की शोभा है। तेरी कृपा से हमारा सामर्थ्य बढ़ता है।
19 प्रभु ही हमारी रक्षा करता है। इस्राएल का परमपावन ईश्वर हमारे राजा को सँभालता है।
20 तूने प्राचीन काल में दर्शन दे कर अपने भक्तों से यह कहाः “मैंने एक शूरवीर की सहायता की है, जनता में एक नवयुवक को ऊपर उठाया है।
21 मैंने अपने सेवक दाऊद को चुन कर अपने पवित्र तेल से उसका अभिशेक किया है।
22 मेरा हाथ उसे सँभालता रहेगा, मेरा बाहुबल उसे शक्ति प्रदान करेगा।
23 कोई शत्रु धोखे से उस पर आक्रमण नहीं कर पायेगा, कोई विद्रोही उसे नीचा नहीं दिखा सकेगा।
24 मैं उसके विरोधियों को उसके सामने मिटा दूँगा, मैं उसके बैरियों को परास्त करूँगा।
25 मेरी सत्यप्रतिज्ञता और मेरी कृपा उसका साथ देती रहेगी। मेरे नाम के कारण उसका सामर्थ्य बढ़ेगा।
26 मैं समुद्र पर उसका हाथ आरोपित करूँगा | और नदियों पर उसका बाहुबल।
27 वह मुझ से कहेगाः तू ही मेरा पिता है, मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान और मेरा उद्धारक!
28 मैं उसे अपना पहलौठा बनाऊँगा, पृथ्वी के राजाओं का अधिपति।
29 मेरी कृपा उस पर बनी रहेगी, मेरी प्रतिज्ञा उसके लिए चिरस्थायी है।
30 मैं उसका वंश सदा बनाये रखूँगा, उसका सिंहासन आकाश की तरह चिरस्थायी होगा।
31 “यदि उसके पुत्र मेरी संहिता का तिरस्कार रहेंगे और मेरी शिक्षा पर नहीं चलेंगे;
32 यदि वे मेरे नियमों का उल्लंघन करेंगे और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं करेंगे,
33 तो मैं उनके अपराधों के कारण उन्हें मारूँगा, उन्हें कोड़े लगा कर अधर्म का दण्ड दूँगा।
34 किन्तु दाऊद के लिए मेरा प्रेम चिरस्थायी है, मेरी प्रतिज्ञा सदा बनी रहेगी।
35 मैं अपनी प्रतिज्ञा भंग नहीं करूँगा, अपने मुख से निकला वचन नहीं बदलूँगा।
36 मैंने सदा के लिए अपनी पवित्रता की शपथ खायी, मैं दाऊद के सामने मिथ्यावादी नहीं बनूँगा।
37 उसके वंश का कभी अन्त नहीं होगा, उसका सिंहासन मेरे सामने सूर्य की तरह बना रहेगा,
38 आकाश में निष्ठावान् साक्षी, सदा बना रहने वाले चन्द्रमा की तरह।”
39 फिर भी तूने अपने अभिषिक्त को त्यागा, और उसे अपमानित होने और उस पर अपना क्रोध प्रकट किया।
40 तूने अपने सेवक के प्रति अपनी प्रतिज्ञा को भंग किया। तूने उसका मुकुट धूल में दूषित होने दिया।
41 तूने उसकी चारदीवारी गिरा दी और उसके गढ़ खँड़हर बना दिये।
42 उधर से गुज़रने वाले उस लूटते हैं। उसके पड़ोसी उस पर ताना मारते हैं।
43 तूने उसके शत्रुओं का बाहुबल बढ़ा दिया। तूने उसके विरोधियों को आनन्द प्रदान किया।
44 तूने उसकी तलवार की धार भोथरी कर दी। तूने उसे संग्राम में नहीं सँभाला।
45 तूने उसका वैभव छीन लिया और उसका सिंहासन भूमि पर उलट दिया।
46 तूने उसके यौवन के दिन घटाये और उसे कलंकित होने दिया।
47 प्रभु! कब तक? क्या तू सदा के लिए छिप गया? क्या तेरा क्रोध आग की तरह जलता रहेगा?
48 याद कर कि कितना अल्प है मेरा जीवनकाल! कितने नश्वर हैं तेरे बनाये हुए मनुष्य!
49 ऐसा कौन मनुष्य है, जो मृत्यु देखे बिना जीवित रहेगा? जो अधोलोक से अपने प्राण छुड़ा सकेगा?
50 प्रभु! कहाँ हैं पूर्वकाल के तेरे उपकार? तूने दाऊद के लिए अपनी सत्यप्रतिज्ञता की शपथ खायी।
51 प्रभु! अपने अपमानित सेवकों की सुधि ले; उस प्रजा की सुधि ले, जो मुझे सौंपी गयी है।
52 प्रभु! तेरे शत्रुओं ने उनकी निन्दा की; उन्होंने तेरे अभिषिक्त का पग-पग पर अपमान किया।
53 प्रभु सदा-सर्वदा धन्य है! आमेन! आमेन!