September 04

पहला पाठ : प्रज्ञा ग्रन्थ 9:13-18

13) “ईश्वर के मन की थाह कौन ले सकता है? कौन ईश्वर की इच्छा जान सकता है?

14) मनुष्यों के विचार अनिश्चित हैं और हमारे उद्देश्यों अस्थिर है;

15) क्योंकि नश्वर शरीर आत्मा के लिए भारस्वरूप है और मिट्टी की यह काया मन की विचार शक्ति घटा देती है।

16) हम पृथ्वी पर की चीजें कठिनाई से जान पाते हैं। जो हमारे सामने है, उसे हम मुष्किल से समझ पाते हैं? तो आकाश में क्या है, इसका पता कौन लगा सकता है?

17) यदि तूने प्रज्ञा का वरदान नहीं दिया होता और अपने पवित्र आत्मा को नहीं भेजा होता, तो तेरी इच्छा कौन जान पाता?

18) इस तरह पृथ्वी पर रहने वालों के पथ सीधे कर दिये गये हैं। जो बात तुझे प्रिय है, उसकी शिक्षा मनुष्यों को मिल गयी और प्रज्ञा के द्वारा उनका उद्धार हुआ है।”

📒 दूसरा पाठ : फिलेमोन 9-10,12-17

9) फिर भी मैं भ्रातृप्रेम के नाम पर आप से प्रार्थना करना अधिक उचित समझता हूँ। मैं पौलुस, जो बूढ़ा हो चला और आजकल ईसा मसीह के कारण कै़दी भी हूँ,

10) ओनेसिमुस के लिए आप से प्रार्थना कर रहा हूँ। वह मेरा पुत्र है, क्योंकि मैं कैद में उसका आध्यात्मिक पिता बन गया हूँ।

12) मैं अपने कलेजे के इस टुकड़े को आपके पास वापस भेज रहा हूँ।

13) मैं जो सुसमाचार के कारण कैदी हूँ, इसे यहाँ अपने पास रखना चाहता था, जिससे यह आपके बदले मेरी सेवा करे।

14) किन्तु आपकी सहमति के बिना मैंने कुछ नहीं करना चाहा, जिससे आप यह उपकार लाचारी से नहीं, बल्कि स्वेच्छा से करें।

15) ओनेसिमुस शायद इसलिए कुछ समय तक आप से ले लिया गया था कि वह आप को सदा के लिए प्राप्त हो,

16) अब दास के रूप में नहीं, बल्कि दास से कहीं, बढ़ कर-अतिप्रिय भाई के रूप में। यह मुझे अत्यन्त प्रिय है और आप को कहीं अधिक -मनुष्य के नाते भी और प्रभु के शिष्य के नाते भी।

17) इसलिए यदि आप मुझे धर्म-भाई समझते हैं, तो इसे उसी तरह अपनायें, जिस तरह मुझे।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 14:25-33

25) ईसा के साथ-साथ एक विशाल जन-समूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा,

26) “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

27) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

28) “तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर ख़र्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है?

29) कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें,

30 ’इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका’।

31) “अथवा कौन ऐसा राजा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो बीस हज़ार की फ़ौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है?

32) यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर सन्धि के लिए निवेदन करेगा।

33) “इसी तरह तुम में जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।