September 09
पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 9:16-19, 22-27
16) मैं इस पर गौरव नहीं करता कि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ। मुझे तो ऐसा करने का आदेश दिया गया है। धिक्कार मुझे, यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ!
17) यदि मैं अपनी इच्छा से यह करता, तो मुझे पुरस्कार का अधिकार होता। किन्तु मैं अपनी इच्छा से यह नहीं करता। मुझे जो कार्य सौंपा गया है, मैं उसे पूरा करता हूँ।
18) तो, पुरस्कार पर मेरा कौन-सा दावा है? वह यह है कि मैं कुछ लिये बिना सुसमाचार का प्रचार करता हूँ और सुसमाचार-सम्बन्धी अपने अधिकारों का पूरा उपयोग नहीं करता।
19) सब लोगों से स्वतन्त्र होने पर भी मैंने अपने को सबों का दास बना लिया है, जिससे मैं अधिक -से-अधिक लोगों का उद्धार कर सकूँ।
20) मैं यहूदियों के लिए यहूदी-जैसा बना, जिससे मैं यहूदियों का उद्धार कर सकँू। जो लोग संहिता के अधीन हैं, उनका उद्धार करने के लिए मैं संहिता के अधीन-जैसा बना, यद्यपि मैं वास्तव में संहिता के अधीन नहीं हूँ।
21) जो लोग संहिता के अधीन नहीं है, उनका उद्धार करने के लिए मैं उनके जैसा बना, यद्यपि मैं मसीह की संहिता के अधीन होने के कारण मैं वास्तव में ईश्वर की संहिता से स्वतन्त्र नहीं हूँ।
22) मैं दुर्बलों के लिए दुर्बल-जैसा बना, जिससे मैं उनका उद्धार कर सकूँ। मैं सब के लिए सब कुछ बन गया हूँ, जिससे किसी-न-किसी तरह कुछ लोगों का उद्धार कर सकूँ।
23) मैं यह सब सुसमाचार के कारण कर रहा हूँ, जिससे मैं भी उसके कृपादानों का भागी बन जाऊँ।
24) क्या आप लोग यह नहीं जानते कि रंगभूमि में तो सभी प्रतियोगी दौड़ते हैं, किन्तु पुरस्कार एक को ही मिलता है? आप इस प्रकार दौड़ें कि पुरस्कार प्राप्त करें।
25) सब प्रतियोगी हर बात में संयम रखते हैं। वे नश्वर मुकुट प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं, जब कि हम अनश्वर मुकुट के लिए।
26) इसलिए मैं एक निश्चित लक्ष्य सामने रख कर दौड़ता हूँ। मैं ऐसा मुक्केबाज़ हूँ, जो हवा में मुक्का नहीं मारता।
27) मैं अपने शरीर को कष्ट देता हूँ और उसे वश में रखता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों को प्रवचन देने के बाद स्वयं मैं ही ठुकरा दिया जाऊँ।
सुसमाचार : लूकस 6:39-42
39) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया, “क्या अन्धा अन्धे को राह दिखा सकता है? क्या दोनों ही गड्ढे में नहीं गिर पडेंगे?
40) शिष्य गुरू से बड़ा नहीं होता। पूरी-पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने गुरू-जैसा बन सकता है।
41) “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?
42) जब तुम अपनी ही आँख की धरन नहीं देखते हो, तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो, ’भाई! मैं तुम्हारी आँख का तिनका निकाल दूँ?’ ढोंगी! पहले अपनी ही आँख की धरन निकालो। तभी तुम अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे।