September 17
पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 15:35-37, 42-49
35) अब कोई प्रश्न पूछ सकता है, “मृतक कैसे जी उठते हैं? वे कौन-सा शरीर ले कर आते हैं?”
36) अरे मूर्ख! तू जो बोता है, वह जब तक नहीं मरता तब तक उस में जीवन नहीं आ जाता।
37) तू जो बोता है, वह बाद में उगने वाला पौधा नहीं, बल्कि निरा दाना है, चाहे वह गेहूँ का हो या दूसरे प्रकार का।
42) मृतकों के पुनरुत्थान के विषय में भी यही बात है। जो बोया जाता है, वह नश्वर है। जो जी उठता है, वह अनश्वर है।
43) जो बोया जाता है, वह दीन-हीन है। जो जी उठता है, वह महिमान्वित है। जो बोया जाता है, वह दुर्बल है। जो जी उठता है, वह शक्तिशाली है।
44) एक प्राकृत शरीर बोया जाता है और एक आध्यात्मिक शरीर जी उठता है। प्राकृत शरीर भी होता है और आध्यात्मिक शरीर भी।
45) धर्मग्रन्थ में लिखा है कि प्रथम मनुष्य आदम जीवन्त प्राणी बन गया और अन्तिम आदम जीवन्तदायक आत्मा।
46) जो पहला है, वह आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्राकृत है। इसके बाद ही आध्यात्मिक आता है।
47) पहला मनुष्य मिट्टी का बना है और पृथ्वी का है, दूसरा स्वर्ग का है।
48) मिट्टी का बना मनुष्य जैसा था, वैसे ही मिट्टी के बने मनुष्य हैं और स्वर्ग का मनुष्य जैसा है, वैसे ही सभी स्वर्गी होंगे;
49) जिस तरह हमने मिट्टी के बने मनुष्य का रूप धारण किया है, उसी तरह हम स्वर्ग के मनुष्य का भी रूप धारण करेंगे।
सुसमाचार :लूकस 8:4-15
4) एक विशाल जनसमूह एकत्र हो रहा था और नगर-नगर से लोग ईसा के पास आ रहे थे। उस समय उन्होंने यह दृष्टान्त सुनाया,
5) “कोई बोने वाला बीज बोने निकला। बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे। वे पैरों से रौंदे गये और आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया।
6) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे। वे उग कर नमी के अभाव में झुलस गये।
7) कुछ बीज काँटों में गिरे। साथ-साथ बढ़ने वाले काँटों ने उन्हें दबा दिया।
8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे। वे उग कर सौ गुना फल लाये।” इतना कहने के बाद वह पुकार कर बोले, “जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले”।
9) शिष्यों ने उन से इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा।
10) उन्होंने उन से कहा, “तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान मिला है। दूसरों को केवल दृष्टान्त मिले, जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें।
11) “दृष्टान्त का अर्थ इस प्रकार है। ईश्वर का वचन बीज है।
12) रास्ते के किनारे गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करें और मुक्ति प्राप्त कर लें, इसलिए शैतान आ कर उनके हृदय से वचन ले जाता है।
13) चट्टान पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं, किन्तु जिन में जड़ नहीं है। वे कुछ ही समय तक विश्वास करते हैं और संकट के समय विचलित हो जाते हैं।
14) काँटों में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सुनते हैं, परन्तु आगे चल कर वे चिन्ता, धन-सम्पत्ति और जीवन का भोग-विलास से दब जाते हैं और परिपक्वता तक नहीं पहुँच पाते।
15) अच्छी भूमि पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते और अपने धैर्य के कारण फल लाते हैं।