September 20

पहला पाठ : सुक्ति 21:1-6, 10-13

1) राजा का हृदय प्रभु के हाथ में जल धारा की तरह है: वह जिधर चाहता, उसे मोड़ देता है।

2) मनुष्य जो कुछ करता है, उसे ठीक समझता है; किन्तु प्रभु हृदय की थाह लेता है।

3) बलिदान की अपेक्षा सदाचरण और न्याय प्रभु की दृष्टि में कहीं अधिक महत्व रखते हैं।

4) तिरस्कारपूर्ण आँखें और धमण्ड से भरा हुआ हृदय: ये पापी मनुष्य के लक्षण हैं।

5) जो परिश्रम करता है, उसकी योजनाएँ सफल हो जाती हैं। जो उतावली करता है, वह दरिद्र हो जाता है।

6) झूठ से कमाया हुआ धन असार है और वह मृत्यु के पाष में बाँध देता है।

10) दुष्ट बुराई की बातें सोचता रहता है, वह अपने पड़ोसी पर भी दया नहीं करता।

11) अविश्वासी को दण्डित देख कर, अज्ञानी सावधान हो जाता है। जब बुद्धिमान् को शिक्षा दी जाती है, तो उसका ज्ञान बढ़ता है।

12) न्यायप्रिय दुष्ट के घर पर दृष्टि रखता और कुकर्मियों का विनाश करता है।

13) जो दरिद्र का निवेदन ठुकराता है, उसकी दुहाई पर कोई कान नहीं देगा।

सुसमाचार :लूकस 8:19-21

19) ईसा की माता और भाई उन से मिलने आये, किन्तु भीड़ के कारण उनके पास नहीं पहुँच सके।

20) लोगों ने उन से कहा, “आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।”

21) उन्होंने उत्तर दिया, “मेरी माता और मेरे भाई वहीं हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं”।