September 21
पहला पाठ : एफ़ेसियों 4:1-7, 11-13
1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें – यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।
2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें
3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।
4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।
5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।
6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।
7) मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में प्रत्येक को कृपा प्राप्त हुई है।
11) उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया।
12) इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रहे,
13) जब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 9:9-13
9) ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठकर उनके पीछे हो लिया।
10) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।
11) यह देखकर फरीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, ’’तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’
12) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।
13) जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’