September 23

पहला पाठ : उपदेशक 3:1-11

1) पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है:

2) प्रसव करने का समय और मरने का समय; रोपने का समय और पौधा उखाड़ने का समय;

3) मारने का समय और स्वस्थ करने का समय; गिराने का समय और उठाने का समय;

4) रोने का समय और हँसने का समय; विलाप करने का समय और नाचने का समय;

5) पत्थर बिखेरने का समय और पत्थर एकत्र करने का समय; आलिंगन करने का समय और आलिंगन नहीं करने का समय;

6) खोजने का समय और खोने का समय; अपने पास रखने का समय और फेंक देने का समय;

7 फाड़ने का समय और सीने का समय; चुप रहने का समय और बोलने का समय;

8) प्यार करने का समय और बैर करने का समय; युद्ध का समय और शान्ति का समय।

9) मनुष्य को अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ ?

10) ईश्वर ने मनुष्यों को जो कार्य सौंपा है, मैंने उस पर विचार किया।

11) उसने सब कुछ उपयुक्त समय के अनुसार सुन्दर बनाया है। उसने मनुष्य को भूत और भविष्य का विवेक दिया है; किन्तु ईश्वर ने प्रारम्भ से अन्त तक जो कुछ किया, उसे मनुष्य कभी नहीं समझ सका।

सुसमाचार :लूकस 9:18-22

18) ईसा किसी दिन एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे और उनके शिष्य उनके साथ थे। ईसा ने उन से पूछा, “मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?”

19) उन्होंने उत्तर दिया, “योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहतें-एलियस; और कुछ लोग कहते हैं-प्राचीन नबियों में से कोई पुनर्जीवित हो गया है”।

20) ईसा ने उन से कहा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” पेत्रुस ने उत्तर दिया, “ईश्वर के मसीह”।

21) उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि वे यह बात किसी को भी नहीं बतायें।

22) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा”।