September 29

पहला पाठ : दानिएल 7:9-10, 13-14

9) मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्जवल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह।

10) उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिहंासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं।

13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।

14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।

अथवा – पहला पाठ : प्रकाशना 12:7-12अ

7) तब स्वर्ग में युद्ध छिड़ गया। मिखाएल और उसके दूतों को पंखदार सर्प से लड़ना पड़ा। पंखदार सर्प और उसके दूतों ने उनका सामना किया,

8) किन्तु वे नहीं टिक सके। और स्वर्ग में उनके लिए कोई स्थान नहीं रहा।

9) तब वह विशालकाय पंखदार सर्प वह पुराना सांप, जो इबलीस या शैतान कहलाता और सारे संसार को भटकाता है- अपने दूतों के साथ पृथ्वी पर पटक दिया गया।

10) मैंने स्वर्ग में किसी को ऊँचे स्वर से यह कहते सुना, ’अब हमारे ईश्वर की विजय, सामर्थ्य तथा राजत्व और उसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों का वह अभियोक्ता नीचे गिरा दिया गया है, जो दिन-रात ईश्वर के सामने उस पर अभियोग लगाया करता था।

11) “वे मेमने के रक्त और अपने साक्ष्य के द्वारा उस पर विजयी हुए, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का मोह छोड़ कर मृत्यु का स्वागत किया;

12) “इसलिए स्वर्ग और उसके निवासी आनन्द मनायें। किन्तु धिक्कार तुम्हें, ऐ पृथ्वी और समुद्र! क्योंकि शैतान, यह जान कर कि मेरा थोड़ा समय ही शेष है, तीव्र क्रोध के आवेश में तुम पर उतर आया है।”

सुसमाचार :योहन 1:47-51

47) ईसा ने नथानाएल को अपने पास आते देखा और उसके विषय में कहा, “देखो, यह एक सच्चा इस्राएली है। इस में कोई कपट नहीं।”

48) नथानाएल ने उन से कहा, “आप मुझे कैसे जानते हैं?” ईसा ने उत्तर दिया, “फिलिप द्वारा तुम्हारे बुलाये जाने से पहले ही मैंने तुम को अंजीर के पेड़ के नीचे देखा”।

49) नथानाएल ने उन से कहा, “गुरुवर! आप ईश्वर के पुत्र हैं, आप इस्राएल के राजा हैं”।

50) ईसा ने उत्तर दिया, “मैंने तुम से कहा, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा, इसीलिए तुम विश्वास करते हो। तुम इस से भी महान् चमत्कार देखोगे।”

51) ईसा ने उस से यह भी कहा, “मैं तुम से यह कहता हूँ- तुम स्वर्ग को खुला हुआ और ईश्वर के दूतों को मानव पुत्र के ऊपर उतरते-चढ़ते हुए देखोगे”।