सुलेमान का सर्वश्रेष्ठ गीत

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अध्याय 7

1 लौट आओ, लौट आओ शूलम्मिती! लौट आओ, लौट आओ, जिससे हम तुम्हें जी भर देख सकें। क्यों तुम लोग शूलम्मिती को जी भर देखना चाहते हो, मानो वह विवाह का कोई उभयनृत्य हो?

2 राजकुमारी! जूतियों से सजे तुम्हारे चरण कितने मनोहर हैं! तुम्हारे नितम्बों की गोलाई किसी शिल्पी के हाथों से तराषी हुई मालाओें के सदृश है।

3 तुम्हारी नाभि गोल प्याला है, जिस में मिश्रित अंगूरी का अभाव न हो! तुम्हारा उदर सोसन पुष्पों से वेष्टित गेहूँ का ढेर है।

4 तुम्हारे उरोज दो मृग-शावकों के सदृश हैं! चिकारे के जुड़वाँ शावको के सदृश।

5 तुम्हारी ग्रीवा हाथीदाँत की मीनार के सदृश है। तुम्हारी आँखें बत-रब्बीम के फाटक पर हेशबोन के जलाशय हैं। तुम्हारी नाक दमिश्क की ओर अभिमुख लेबानोन की मीनार है।

6 तुम्हारा ऊँचा मस्तक करमेल पर्वत की तरह है। तुम्हारी अलकें बैंगनी वस्त्र के सदृश हैं, उनकी लटों ने राजा को बन्दी बना लिया है।

7 आनन्ददायिनी मेरी प्रिये! तुम कितनी सुन्दर और कितनी रमणीय हो!

8 तुम्हारा आकार खजूर वृक्ष के सदृश है और तुम्हारे उरोज उसके गुच्छों के सदृश।

9 मैंने कहा; “मैं इस खजूर पर चढूँगा और इसके फल तोडूँगा”। तुम्हारे उरोज मेरे लिए अंगूर के गुच्छे बन जायें, तुम्हारे श्वासों की सुरभि सेबों-जैसी

10 और तुम्हारा मुख सर्वोत्तम अंगूरी-जैसा हो जाये! वह अंगूरी अधरों और दन्तपंक्तियों पर बहती हुई सीधे मेरे प्रियतम के पास पहुँचे।

11 मैं अपने प्रियतम की हूँ और वह मेरी कामना करता है।

12 आओ, मेरे प्रियतम! हम नगर के बाहर चलें, हम रात गाँवों में बितायें,

13 हम सबेरे यह देखने दाखबारियाँ चलें कि क्या अंगूर लताओं में कलियाँ फूटी हैं, उनके फलों की पंखड़ियाँ खिली हैं और अनार वृक्ष फूलों से गदराये है। मैं वहाँ तुम को अपना मधुर चुम्बन दूँगी।

14 लक्ष्मण-पुष्पों की सुगन्ध फैल रही है और हमारे द्वार पर नये और पुराने, सभी प्रकार के स्वादिष्ट फल लटक रहे हैं, जिन्हें मेरी प्रियतम! मैंने तुम्हारे लिए संचित किया है।